History MCQ–इतिहास के 25 प्रश्न के श्रृंखला की शुरुआत की गई है। यह UPSC/UPPSC/BPSC/SSC CGL/NTA NET HISTORY/RAILWAY इत्यादि के लिए बहुत ही महत्वपूर्ण प्रश्नों का संग्रह किया गया है। यह श्रंखला का लक्ष्य 1000 प्रश्नों का है। अतः सब्सक्राइव कर ले एवम् इसका लाभ उठाए।इससे आप अपने तैयारी की जांच कर सकते हैं। साथ ही यह सभी परीक्षाओं के लिए तैयार किया गया है।इसके pdf को आप हमारे वेबसाइट पर डाउनलोड कर सकते हैं।

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History MCQ Set -19 (451-475)
451. निम्नलिखित हड़प्पाकालीन नगरों में कौन-सा नगर ‘मृतकों का टीला’ के रूप में विख्यात है ? (a) हड़प्पा (b) चन्द्रदड़ो (c) लोथल (d) इनमें से कोई नहीं |
उत्तर- (d) व्याख्या- हड़प्पाकालीन नगरों में मोहनजोदड़ो नगर ‘मृतकों का टीला’ के रूप में विख्यात है। यह सिन्ध के लरकाना जिले में सिन्धु नदी तट पर स्थित है। इसकी सर्वप्रथम खोज राखालदास बनर्जी ने 1922 में की थी। मोहनजोदड़ो का सबसे महत्वपूर्ण सार्वजनिक स्थल विशाल स्नानागार, जो दुर्ग के टीले में है। यह 11.88 मी. लम्बा, 7.01 मी. चौड़ा और 2.43 मी. गहरा है। यह विशाल स्नानागार धर्मानुष्ठान सम्बन्धी स्नान के लिए था। मार्शल ने इसे तत्कालीन विश्व का एक आश्चर्यजनक निर्माण कहा। विशाल अन्नागार मोहनजोदड़ो की सबसे बड़ी इमारत है, जो 45.71 मी. लम्बा और 15.23 मी. चौड़ा है। मोहनजोदड़ो में नगर योजना के अन्तर्गत उत्तर-दक्षिण एवं पूर्व-पश्चिम की ओर जाने वाली समानान्तर सड़कों का जाल बिछा था, जिन्होंने नगर को लगभग समान आकार वाले खण्डों में विभाजित कर दिया था। मोहनजोदड़ो की शासन व्यवस्था राजतन्त्रात्मक न होकर जनतन्त्रात्मक थी। मोहनजोदड़ो के पश्चिमी भाग में स्थित दुर्ग टीले को ‘स्तूप टीला’ भी कहा जाता है, क्योंकि यहाँ पर कुषाण शासकों ने एक स्तूप का निर्माण करवाया था। |
452. ‘द आर्कटिक होम ऑफ द आर्यन्स’ के लेखक कौन हैं ? (a) दयानन्द सरस्वती (b) गोपालकृष्ण गोखले (c) बाल गंगाधर तिलक (d) इनमें से कोई नहीं |
उत्तर-(c) व्याख्या- ‘द आर्कटिक होम ऑफ द आर्यन्स’ के लेखक बाल गंगाधर तिलक है। तिलक महान् स्वतन्त्रता सेनानी थे, वे लोकमान्य के नाम से विख्यात थे। उन्होंने राष्ट्रवादी भावनाओं को बहुत प्रोत्साहन दिया। वे राष्ट्रीय आन्दोलन के प्रथम नेता थे जिसने जनसाधारण के साथ निकट सम्बन्ध स्थापित किए। इस अर्थ में उन्हें गाँधी जी का अग्रगामी माना जा सकता है। उन्होंने अपना जीवन एक शिक्षक के रूप में प्रारम्भ किया था, तथा न्यू इंग्लिश स्कूल की स्थापना की। अखाड़ा, लाठी कलब तथा गणपति व शिवाजी महोत्सवों के द्वारा उन्होंने महाराष्ट्र में नवीन जागृति का संचार किया। उन्होंने ‘मराठी’ (अंग्रेजी) तथा ‘केसरी’ (मराठी) नामक दो समाचार-पत्र निकाले। वे आरम्भ से ही कांग्रेस से जुड़े रहे। उन्हें कई बार गिरफ्तार किया गया। 1908 ई. में राजद्रोह का अभियोग लगाकर 6 वर्ष की जेल दी गई, जिसके विरोध में नागपुर में मजदूरों ने हड़ताल की। उनका स्वराज्य, बहिष्कार व राष्ट्रीय शिक्षा में विश्वास था। उन्होंने नारा दिया “स्वराज्य मेरा जन्मसिद्ध अधिकार है, जिसे मैं लेकर रहूंगा।” 1906 ई. में कांग्रेस द्वारा स्वराज्य प्राप्ति के लक्ष्य की घोषणा तथा 1916 ई. में होमरूल लीग आन्दोलन में पाल के साथ कांग्रेस के उग्रवादी नेताओं में रहे। वे समाज सुधार कार्यक्रम में ब्रिटिश हस्तक्षेप के विरोधी थे। एक विद्वान् के रूप में उन्होंने गीता रहस्य व आर्कटिक होम इन द वेदाज नामक ग्रन्थ लिखे। अपने जीवन के अन्तिम समय में वेलेन्टाइन शिरोल के द्वारा उन्हें भारतीय अशान्ति का जनक’ कहने पर उसके विरुद्ध मानहानि के मामले में व्यस्त रहे । अगस्त, 1920 को उनकी मृत्यु हो गई। |
453. संस्कारों की कितनी संख्या थी ? (a) 12 (b) 14 (c) 16 (d) 18 |
उत्तर-(c) व्याख्या-संस्कारों की संख्या 16 थी, जो इस प्रकार हैं- 1. गर्भाधान 2. पुंसवन 3. सीमन्तोन्नयन 4. जातकर्म 5. नामकरण 6. निष्क्रमण 7. अन्नप्राशन 8. चूड़ाकरण 9. कर्णवेध 10. विद्यारम्भ 11. उपनयन 12. वेदारम्भ 13. केशान्त 14. समावर्त्तन 15. विवाह तथा 16. अन्त्येष्टि |
454. कौन-सा वेद प्राचीनतम है ? (a) सामवेद (b) ऋग्वेद (c) अथर्ववेद (d) यजुर्वेद |
उत्तर-(b) व्याख्या- ऋग्वेद आर्यों का सबसे प्राचीन ग्रन्थ है। ऋ का अर्थ होता है छन्दोबद्ध रचना या श्लोका ऋग्वेद के सूक्त विविध देवताओं की स्तुति करने वाले भाव भरे गीत हैं, इनमें भक्ति-भाव की प्रधानता है। यद्यपि ऋग्वेद में अन्य प्रकार के सूक्त भी है, परन्तु देवताओं की स्तुति करने वाले स्रोतों की प्रधानता है। ऋग्वेद की रचना सम्भवतः सप्तसैन्धव प्रदेश में हुई है। इसमें कुल 10 मण्डल, 1028 सूक्त एवं 10580 मन्त्र हैं। मन्त्रों को ऋचा भी कहा जाता है। सूक्त का अर्थ है ‘अच्छी उक्ति प्रत्येक सूक्त में तीन से सौ तक मन्त्र व ऋचाएँ हो सकती हैं। वेदों का संकलन महर्षि कृष्ण द्वैपायन ने किया। इसलिए इनका एक नाम ‘वेदव्यास’ भी है। ऋग्वेद में ज्यादातर मन्त्र देव आह्वान से सम्बन्धित है। ऋग्वेद के मन्त्रों का उच्चारण करके जो पुरोहित यज्ञ सम्पन्न कराता था उसे ‘होता’ कहा जाता था। |
455. मनुस्मृति की रचना कब हुई ? (a) मौर्य काल (b) शुंग काल (c) कुषाण काल (d) गुप्त काल |
उत्तर-(b) व्याख्या – मनुस्मृति की रचना शुंग काल में हुई थी। मनु का धर्मशास्त्र हिन्दू धर्म के सम्बन्ध में प्रमुख और सबसे प्रामाणिक ग्रन्थ है और हिन्दू समाज और सभ्यता के लोकमान्य स्वरूप को प्रकट करता है। मनु का नाम अत्यन्त प्राचीन काल में कई रूप में मिलता है। ये मानव जाति के आदि पुरुष, राजसंस्था के प्रथम कर्ता तथा धर्म के प्रथम व्यवस्थापक हैं। मनुस्मृति में आर्य संस्कृति के चार क्षेत्रों ब्रह्मवर्त, ब्रह्मर्षि, मध्यदेश और आर्यावर्त का उल्लेख मिलता है। शूद्रों के बारे में कहा गया है कि सेवा करना ही उनके जीवन का कर्म तथा ब्राह्मणों को उनके द्वारा दिए गए अन्न को न ग्रहण करने की बात कही गई है। यद्यपि मनु शूद्र अध्यापकों एवं शिष्यों का उल्लेख करते हैं। मनु ने दासों के सात प्रकारों का विवेचन किया है। मनुस्मृति में स्त्रियों को वेदाध्ययन का अधिकार नहीं दिया गया है। कानून की दृष्टि से स्त्रीधन के अतिरिक्त वे सम्पत्ति की स्वामिनी नहीं बन सकती थीं। स्त्रीधन पर माता के बाद पुत्रियों और उसके बाद बहुओं का अधिकार था। विधवाओं के लिए इसमें मुण्डन की बात कही गई है। |
456. आर्यों ने भारत पर कब विजय प्राप्त की ? (a) 1400 ई.पू. (b) 1000 ई.पू. (c) 1500 ई.पू. (d) 1900 ई.पू. |
उत्तर-(c) व्याख्या – आर्यों ने भारत पर 1500 ई.पू. में विजय प्राप्त की थी। |
457. निम्नलिखित में से कौन-सा एक ऋग्वेद में स्त्रियों के विषय में सही नहीं है ? (a) वे सभा की कार्यवाही में भाग लेती थीं (b) वे यज्ञ का अनुष्ठान करती थीं (c) वे युद्धों में सक्रिय भाग लेती थीं (d) उनका विवाह यौवनारम्भ से पूर्व हो जाता था |
उत्तर— (d) व्याख्या- ऋग्वैदिक काल में स्त्रियों का विवाह यौवनारम्भ से पूर्व नहीं होता था। ऋग्वैदिक समाज यद्यपि पुरुष प्रधान था लेकिन स्त्रियों की दशा काफी अच्छी थी। कन्याओं का उपनयन संस्कार होता था, जिसके कारण वे भी पुरुषों की तरह शिक्षा प्राप्त करती थी। लोपामुद्रा, घोषा, सिक्ता, विश्ववारा, अपाला, निवाजरी आदि विदुषी स्त्रियों ने ऋग्वेद की बहुत सी ऋचाओं की रचना की। ऋग्वैदिक काल में स्त्रियाँ सभा और विदध में भाग लेती थीं। स्त्रियों में पुनर्विवाह, नियोग प्रथा एवं बहुपति विवाह का प्रचलन था। नियोग प्रथा से उत्पन्न सन्तान क्षेत्रज कहलाती थी। उनका विवाह वयस्क होने पर ही होता था। जो कन्याएँ जीवन भर कुँवारी रहती थीं उन्हें अभाजू कहा जाता था। आधुनिक काल की अनेक कुरीतियों जैसे-दहेज प्रथा, पर्दा प्रथा, सती प्रथा आदि का उल्लेख नहीं मिलता है। इस समय उन्हें केवल सम्पत्ति का अधिकार प्राप्त नहीं था। |
458. जाति का लक्षण नहीं है- (a) अन्तर्विवाह (b) श्रम विभाजन (c) साम्या (d) आनुवंशिक |
उत्तर-(c) व्याख्या साम्या जाति का लक्षण नहीं है। जाति शब्द का सर्वप्रथम उल्लेख यास्क ने अपने ग्रन्थ ‘निरूक्त’ में कृष्ण जाति के रूप में किया। तीसरी शताब्दी ई.पू. से वर्ण के लिए जाति शब्द का प्रयोग होने लगा। |
459. बंगाल का द्वैध शासन कब समाप्त हुआ ? (a) 1770 ई. (b) 1771 ई. (c) 1772 ई. (d) 1773 ई |
उत्तर-(c) व्याख्या – बंगाल का द्वैध शासन 1772 ई. में समाप्त हुआ। द्वैध शासन का जनक लियो कार्टिस को माना जाता है। द्वैध शासन जिसकी शुरूआत बंगाल में 1765 ई. से मानी जाती है, के अन्तर्गत कम्पनी ने दीवानी और निजामत के कार्यों का निष्पादन भारतीय के माध्यम से करती थी, लेकिन वास्तविक शक्ति कम्पनी के हाथों में होती थी। दीवानी और निजामत दोनों अधिकार प्राप्त कर लेने के बाद ही कम्पनी ने बंगाल में द्वैध शासन की शुरूआत की। |
460. वर्णसंकर की संकल्पना सबसे पहली बार मिलती है— (a) ब्राह्मणों में (b) उपनिषदों में (c) धर्मसूत्रों में (d) स्मृतियों में |
उत्तर-(c) व्याख्या-वर्णसंकर की संकल्पना सबसे पहले धर्मसूत्रों में मिलती है। धर्मसूत्रों का संकलन 500 ई.पू. से 200 ई. पू. के मध्य हुआ। इसमें राजनीतिक, सामाजिक एवं धार्मिक कर्त्तव्यों का उल्लेख है। धर्मसूत्र से सामाजिक व्यवस्था, जैसे- वर्णाश्रम, पुरुषार्थ आदि की भी जानकारी मिलती है। धर्मसूत्र के प्रणेता ‘आपस्तम्ब’ माने जाते हैं। |
461. ऋग्वेद में वर्णित ‘दस राजन युद्ध’ किस नदी के तट पर हुआ था ? (a) सरस्वती (b) परुष्णी (c) शतुद्रि (d) व्यास |
उत्तर – (b) व्याख्या- ऋग्वेद में वर्णित ‘दस राजन युद्ध‘ ‘परुष्णी‘ नदी के तट पर हुआ था। परुष्णी नदी के तट पर यह युद्ध भरत वंश (अथवा त्रित्सु राजवंश) के राजा सुदास तथा दस अन्य जनों के राजाओं के बीच लड़ा गया था। इस युद्ध में दोनों तरफ आर्य एवं अनार्य शामिल थे। ये दस जन थे— पुरु, यदु, अनु, द्रह्यु, तुर्तश, अलिन, पक्थ, भलानस, विषाणी और शिव। इस युद्ध का कारण भरत वंश के राजा सुदास द्वारा अपने पुरोहित विश्वामित्र को हटाकर उनकी जगह वशिष्ठ को नियुक्त करना था। अतः विश्वामित्र ने दस राजाओं को इकट्ठा कर सुदास के विरुद्ध युद्ध की घोषणा कर दी। परन्तु विजय सुदास की ही हुई। ऋग्वेद के सातवें मण्डल में दशराज्ञ युद्ध का उल्लेख है। इसका एक कारण राज्य – विस्तार भी माना जाता है। |
462. उत्तरवैदिक काल में किस वर्ण को शिक्षा का अधिकार नहीं था ? (a) वैश्य (b) क्षत्रिय (c) शूद्र (d) ब्राह्मण |
उत्तर – (c) व्याख्या— उत्तरवैदिक काल में शूद्र वर्ण को शिक्षा का अधिकार नहीं था। शूद्र का सर्वप्रथम उल्लेख ऋग्वेद के 10 वें मण्डल के पुरुष सूक्त में मिलता है। मनु ने तीनों वर्णों की सेवा करना ही शूद्रों का मुख्य कार्य बताया है। नृसिंह पुराण में उल्लेख है कि शूद्रों का मुख्य पेशा कृषि है। स्मृति ग्रन्थों में शूद्रों को धर्म के क्षेत्र में कुछ छूट प्रदान की गई। याज्ञवल्क्य स्मृति का उल्लेख है कि शूद्र ‘ओंकार’ शब्द की जगह नमः शब्द का प्रयोग करते हुए पंचमहायज्ञ कर सकते हैं। मार्कण्डेय पुराण में यज्ञ करना और दान देना शूद्रों का कार्य बताया गया है। मृच्छकटिकम् में उल्लेख मिलता है कि ब्राह्मण और शूद्र एक ही घाट से पानी भरते थे। वराहमिहिर ने बृहत्संहिता में चारों वर्णों के लिए अलग-अलग मकानों का उल्लेख किया है। उनके अनुसार ब्राह्मणों के मकान में 5 कमरे, क्षत्रिय में 4 कमरे, वैश्य में 3 कमरे और शूद्रों में 2 कमरे होने चाहिए। न्यायसंहिता में भी भेद स्पष्ट दिखाई पड़ता है। इसके अनुसार ब्राह्मण की परीक्षा तुला से, क्षत्रिय की अग्नि से, वैश्य की जल से एवं शूद्र की परीक्षा विष से लेनी चाहिए। न्यायसंहिताओं में उल्लेख है कि शूद्र केवल अपनी ही जाति का साक्षी (गवाह) बन सकता है। |
463. जिस जैन ग्रन्थ में तीर्थंकरों के जीवन-चरित हैं, उसका नाम है- (a) भगवतीसूत्र (b) आदिपुराण (c) कल्पसूत्र (d) उवासगदसाओ |
उत्तर-(c) व्याख्या जैन ग्रन्थ कल्पसूत्र में तीर्थंकरों, जीवन-चरित एवं उसका नाम है। इसकी रचना भद्रबाहू ने की थी। इसमें छठी के चौथी शताब्दी ई.पू. की प्रारम्भिक जैन इतिहास की जानकारी मिलती है। |
464. अशोक की धम्मनीति का मुख्य सिद्धान्त था- (a) स्वनियन्त्रण (b) दान (c) दया (d) संयम |
उत्तर- (a) व्याख्या – अशोक की धम्मनीति का मुख्य सिद्धान्त स्वनियन्त्रण था। संसार के इतिहास में अशोक की प्रसिद्धि का कारण उसकी विजयें नहीं अपितु ‘धम्म’ है। धम्म शब्द संस्कृत भाषा के धर्म का प्राकृत रूपान्तर अपने दूसरे तथा सातवें स्तम्भ लेखों में अशोक ने धम्म की व्याख्या इस प्रकार की है— धम्म है साधुता, बहुत से कल्याणकारी अच्छे कार्य करना, पाप रहित होना, मृदुता, दूसरों के प्रति व्यवहार में मधुरता, दया, दान तथा शुचिता। आगे कहा गया है कि प्राणियों का वध न करना, जीव हिंसा न करना, माता-पिता तथा बड़ों की आज्ञा मानना, गुरुजनों के प्रति आदर, मित्र, परिचितों, सम्बन्धियों, ब्राह्मणों तथा श्रमणों के प्रति दानशीलता तथा उचित व्यवहार। दासों तथा भृत्यों के प्रति उचित व्यवहार भी धर्म के अन्तर्गत आते हैं। अशोक ने धम्म की प्रगति में बाधक पाप की भी व्याख्या की है— चण्डता, निष्ठुरता, क्रोध, मान और ईर्ष्या पाप के लक्षण हैं। अशोक ने नित्य आत्मपरीक्षण पर भी बल दिया है। |
465. मौर्य काल में ‘विष्टि’ शब्द का क्या अर्थ है ? (a) प्रान्त (b) जिला (c) बन्धुआ मजदूर (d) ग्राम |
उत्तर-(c) व्याख्या – मौर्य काल में ‘विष्टि’ शब्द का अर्थ बन्धुआ मजदूर है। |
466. चाणक्य, जो चन्द्रगुप्त मौर्य का प्रसिद्ध मन्त्री था, किस विश्वविद्यालय में अध्यापक था ? (a) तक्षशिला (b) उज्जैनी (c) पाटलिपुत्र (d) विक्रमशिला |
उत्तर- (a) व्याख्या – चाणक्य चन्द्रगुप्त मौर्य का प्रसिद्ध मन्त्री था। यह तक्षशिला विश्वविद्यालय में अध्यापक था। वर्तमान पाकिस्तान के रावलपिण्डी जिले में स्थित तक्षशिला प्राचीन समय में गन्धार राज्य की राजधानी थी। रामायण के अनुसार भरत ने अपने पुत्र के नाम पर इस नगर की स्थापना की थी। महाभारत से पता चलता है कि परीक्षित के पुत्र (जनमेजय) ने इसे जीता तथा यहीं अपना प्रसिद्ध नागयज्ञ किया था। तक्षशिला की इतिहास में प्रसिद्धि का कारण उसका ख्याति प्राप्त शिक्षा केन्द्र होना था। यहाँ अध्ययन करने के लिए दूर-दूर से विद्यार्थी आते थे, जिनमें राजा तथा सामान्य जन दोनों शामिल थे। सबके साथ समानता का व्यवहार किया जाता था। कौशल के राजा प्रसेनजित मगध का राजवैद्य जीवक, सुप्रसिद्ध राजनीतिविद् चाणक्य, बौद्ध विद्वान् वसुबन्धु आदि ने यहीं शिक्षा प्राप्त की थी। बौद्ध साहित्य से पता चलता है कि यह धनुर्विद्या तथा वैद्यक की शिक्षा के लिए पूरे विश्व में प्रसिद्ध था। चन्द्रगुप्त मौर्य ने अपनी सैनिक शिक्षा यहीं पर ग्रहण की थी। तक्षशिला जैन-धर्म का भी तीर्थस्थल कहा गया है। पुरातन प्रबन्ध संग्रह में यहाँ के 105 जैन स्थलों का विवरण प्राप्त होता है। |
467. इण्डिका की रचना किसने की थी ? (a) मेगस्थनीज (b) प्लूटार्क (c) सेल्युकस (d) सिकन्दर |
उत्तर- (a) व्याख्या – इण्डिका की रचना मेगस्थनीज ने की थी। मौर्यकालीन इतिहास जानने का सबसे महत्त्वपूर्ण स्रोत इण्डिका है। मेगस्थनीज, सेल्युकस का राजदूत था जो चन्द्रगुप्त मौर्य के दरबार में 304 ई.पू. से 299 ई.पू. के बीच रहा। उसके ग्रन्थ इण्डिका से चन्द्रगुप्त मौर्य के प्रशासन की विश्वसनीय जानकारी प्राप्त होती है। हालाँकि यह ग्रन्थ अपने मूल रूप में उपलब्ध नहीं है, फिर भी इसके उद्धरण अनेक यूनानी लेखकों एरियन, स्ट्रैबो, प्लूटार्क, प्लिनी, जस्टिन एवं डायोडोरस आदि के उद्धरणों में प्राप्त होते हैं। स्ट्रैबो ने मेगस्थनीज के वृत्तांत को पूर्णतया असत्य एवं अविश्वसनीय कहा। डॉ. स्वानवेग ने सर्वप्रथम 1846 ई. में इन समस्त उद्धरणों को संग्रहीत करके प्रकाशित किया था। 1891 ई. में मैक्रिण्डल महोदय ने इसका अंग्रेजी में अनुवाद किया था। इण्डिका एक अन्य यूनानी लेखक एरियन की भी कृति मानी जाती है। |
468. मौर्य काल में प्रचलित विनिमय-माध्यम था- (a) कपद्दक- पुराण (b) चूर्णि (c) पण (d) दिनार |
उत्तर-(c) व्याख्या- मौर्य काल में प्रचलित विनिमय-माध्यम ‘पण’ था, ‘पण’ मौर्यों की राजकीय मुद्रा थी। यह 3/4 तोले के बराबर चाँदी का सिक्का था। अधिकारियों को वेतन आदि देने में इसी का प्रयोग होता था। इसके ऊपर सूर्य, चन्द्र, पीपल, मयूर, बैल, सर्प आदि खुदे होते थे। अत: इसे आहत सिक्का भी कहा जाता है। इस काल के सिक्के स्वर्ण, चाँदी और ताँबे के बने होते थे। स्वर्ण सिक्के-निष्क एवं सुवर्ण चाँदी के सिक्के – पण या रुप्यरूप, कार्षापण, धरण और शतमान ताँबे के सिक्के—मासक एवं काकणि |
469. किस शासक के समय में जैनधर्म दो सम्प्रदायों में विभाजित हुआ ? (a) बिम्बिसार (b) अजातशत्रु (c) चन्द्रगुप्त मौर्य (d) बिन्दुसार |
उतर-(c) व्याख्या – चन्द्रगुप्त मौर्य के समय में जैनधर्म दो समुदायों में विभाजित हुआ। चन्द्रगुप्त मौर्य ने अपने गुरु विष्णुदत्त अथवा कौटिल्य से अन्तिम नन्द नरेश धनानन्द को परास्त कर नन्द वंश के स्थान पर मौर्य वंश का शासन स्थापित किया। चन्द्रगुप्त मौर्य के समय में मगध क्षेत्र में अकाल पड़ा। इस समय जैनधर्म के प्रमुख भद्रबाहु थे। भद्रबाहु अपनेअनुयायियों के साथ दक्षिण भारत चले गए। स्थूलभद्र अपने अनुयायियों के साथ मगध में ही रुके रहे और उन्होंने श्वेत वस्त्र धारण करना आरम्भ कर दिया। इसी कारण वे श्वेताम्बर कहलाए। भद्रबाहु के अनुयायी दिगम्बर कहलाए। श्वेताम्बर जैनियों को यदि, आचार्य तथा साधु कहा जाता था, जबकि दिगम्बर जैनियों को झुल्लक, ऐल्लक और निग्रन्थ कहा जाता था। श्वेताम्बर अनुयायी भोजन आवश्यक समझते थे, जबकि दिगम्बर मानते थे कि ज्ञान प्राप्ति के बाद भोजन आवश्यक नहीं है। श्वेताम्बर मत के अनुयायी महावीर स्वामी का विवाह हुआ और पुत्री भी उत्पन्न हुई, जबकि दिगम्बरों का मानना था कि वे अविवाहित थे। श्वेताम्बर मानते थे कि 19 वें तीर्थंकर मल्लिनाथ स्त्री थे जबकि दिगम्बरों के अनुसार वे पुरुष थे। |
470. निम्नलिखित में से किसने मगध की राजधानी वैशाली को बनाया ? (a) अजातशत्रु (b) शिशुनाग (c) कालाशोक (d) महापद्म |
उत्तर-(b) व्याख्या – शिशुनाग ने वैशाली को मगध की राजधानी बनाया। इसकी सबसे बड़ी सफलता अवन्ति राज्य को जीतकर उसे मगध साम्राज्य में मिलाना था। शिशुनाग नाग वंश से सम्बन्धित था। महावंश टीका में उसे एक लिच्छवि राजा की वेश्या पत्नी से उत्पन्न कहा गया है। पुराण उसे ‘क्षत्रिय‘ कहते हैं। पुराणों का कथन अधिक सही लगता है, क्योंकि यदि वह वेश्या की सन्तान होता तो रूढ़िवादी ब्राह्मण उसे कभी भी राजा स्वीकार न करते तथा उसकी निन्दा भी करते। अवन्ति राज्य की विजय एक महान् सफलता थी। इससे मगध साम्राज्य की पश्चिमी सीमा मालवा तक जा पहुँची। इस विजय से शिशुनाग का वत्स के ऊपर भी अधिकार हो गया क्योंकि ये अवन्ति के अधीन था। आर्थिक दृष्टि से भी अवन्ति की विजय लाभदायक सिद्ध हुई। पाटलिपुत्र से एक व्यापारिक मार्ग अवन्ति तथा वत्स होते हुए भड़ौच तक जाता था। वत्स तथा अवन्ति पर अधिकार हो जाने से पाटलिपुत्र को पश्चिमी विश्व से व्यापार वाणिज्य के लिए मार्ग प्राप्त हो गया। इस प्रकार शिशुनाग की विजय के फलस्वरूप मगध राज्य एक विशाल साम्राज्य में बदल गया तथा उसके अन्तर्गत बंगाल की सीमा से लेकर मालवा तक का विस्तृत भू-भाग सम्मिलित हो गया। उत्तर प्रदेश का एक बड़ा भाग भी उसके अधीन था। |
471. अशोक के किस अभिलेख में कलिंग युद्ध का वर्णन है ? (a) दसवें शिलालेख (b) ग्यारहवें शिलालेख (c) बारहवें शिलालेख (d) तेरहवें शिलालेख |
उत्तर-(d) व्याख्या- अशोक के तेरहवें शिलालेख अभिलेख में कलिंग युद्ध का वर्णन है। अपने अभिषेक के 8 वर्ष पश्चात् (9 वें वर्ष) देवताओं के प्रिय राजा प्रियदर्शी ने कलिंग पर विजय प्राप्त की। 1 लाख 50 हजार व्यक्ति देश से विस्थापित हुए, 1 लाख व्यक्ति मारे गए तथा इससे कई गुना लोग बर्बाद हो गए। इस अभिलेख में अशोक अपने राज्य की जंगली जनजातियों को सन्तुष्ट रखता है, लेकिन वह उन्हें चेतावनी भी देता है। कि पश्चाताप के बावजूद उसमें शक्ति है। |
472. ‘करिकाल’ निम्नलिखित किस राजवंश से था ? (a) चेर (b) चोल (c) पांड्य (d) पल्लव |
उत्तर-(b) व्याख्या- ‘करिकाल’ चोल राजवंश से था। यह प्रारम्भिक चोल राजाओं में सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण शासक था। इसका काल लगभग 190 ई. माना जाता है। अपने शासन के प्रारम्भिक काल में करिकाल को पदच्युत कर दिया गया था, तथा उसे कैद भी कर लिया गया था। पद्दिनप्पाल के लेखक ने उसके निकल भागने का तथा अपने को पुनः गद्दी पर स्थापित करने का रोचक वर्णन चोल राजधानी कावेरीपत्तनम पर रचित पत्पात नामक एक लम्बी कविता में किया है। इसने चोलों की तटीय राजधानी पुहार (आधुनिक कावेरीपत्तनम) की स्थापना की तथा कावेरी नदी के किनारे 160 किमी लम्बा बाँध बनवाया। तंजौर के निकट वेष्णि के युद्ध से उसे अत्यधिक प्रसिद्धि प्राप्त हुई। इस युद्ध में उसने चेर तथा पाण्ड्य राजा के ग्यारह राजाओं के समूह पर विजय प्राप्त की। उसकी दूसरी सफलता वाहैप्परन्दलइ का युद्ध था। इस युद्ध में उसने नौ राजाओं को पराजित किया। करिकाल ने उद्योग-धन्धों तथा कृषि की उन्नति में विशेष रुचि ली। इसने जंगल को कृषि योग्य भूमि में परिवर्तित करने का प्रोत्साहन दिया और सिंचाई के लिए तालाब खुदवाए। करिकाल सात स्वरों (संगीत) का ज्ञानी तथा वैदिक धर्म का अनुयायी था। |
473. सातवाहनों की राजकीय भाषा थी— (a) प्राकृत (b) संस्कृत (c) तमिल (d) तेलुगु |
उत्तर- (a) व्याख्या—सातवाहनों की राजकीय भाषा प्राकृत तथा लिपि ब्राह्मी थी। सातवाहन नरेश हाल ने अपने प्रसिद्ध ग्रन्थ गाथा सप्तशती की रचना इसी भाषा में की। सातवाहनों के अभिलेख इसी भाषा में लिखे गए हैं। हाल के दरबार में गुणाढ्य तथा रविवर्मन जैसे उच्च कोटि के विद्वान् निवास करते थे। गुणाढ्य ने बृहत्कथा नामक ग्रन्थ की रचना की थी। यह मूलत: पैशाची प्राकृत में लिखा गया था। इसमें करीब एक लाख पद्यों का संग्रह था। |
474. सर्वप्रथम ब्राह्मणों को किसने भूमिदान किया ? (a) कुषाण (b) सातवाहन (c) गुप्त (d) मौर्य |
उत्तर-(b) व्याख्या – सर्वप्रथम ब्राह्मणों को भूमिदान सातवाहन शासकों ने दिया । पुराणों में सातवाहन वंश को ‘आन्ध जातीय’ तथा ‘आन्ध्रभृत्य’ कहा गया है। इस वंश की स्थापना सिमुक ने की थी। इस वंश के इतिहास के लिए मत्स्य तथा वायु पुराण विशेष रूप से उपयोगी हैं। सातवाहन वंश के शासकों को दक्षिणाधिपति तथा इनके द्वारा शासित प्रदेश दक्षिणापथ कहा जाता है। सर्वमान्य तौर पर सातवाहनों का मूल स्थान महाराष्ट्र का प्रतिष्ठान माना जाता है। सिमुक को प्रथम सातवाहन शासक माना जाता है। |
475.गौतमीपुत्र शातकर्णी किसका राजा था ? (a) पाल (b) चोल (c) सातवाहन (d) चेदि |
उत्तर-(c) व्याख्या – गौतमीपुत्र शातकर्णी सातवाहन राजा था। यह इस वंश का (23 वाँ तथा सबसे महान् शासक था। उसने अपने को एकमात्र ब्राह्मण कहा, शकों को हराया तथा क्षत्रिय शासकों के दर्प को चूर किया। इसकी सैनिक विजयों की जानकारी इनकी माँ वलश्री के नासिक प्रशस्ति से मिलती है। जोगलथम्बी मृद्भाण्ड (नासिक) से नहपान की भारी संख्या में (8000 से अधिक) चाँदी की मुद्राएँ मिली हैं। उन पर सातवाहन शासक द्वारा पुनः ढलवाए जाने के चिन्ह हैं। इससे उसकी क्षहरात वंश के शासक नहपान पर विजय के संकेत मिलते हैं। गौतमीपुत्र शातकर्णी ने वेणकटक स्वामी (नासिक जिला) की उपाधि धारण की तथा वेणकटक नामक नगर की स्थापना की। उसने बौद्ध संघ को अजकालकिय‘ तथा कार्ले के भिक्षुसंघ को ‘करजक‘ नामक ग्राम दान में दिए। गौतमीपुत्र शातकर्णी का साम्राज्य उत्तर में मालवा से लेकर दक्षिण में कर्नाटक तक फैला हुआ था। उसने ‘राजाराज‘ तथा ‘विन्ध्यनरेश‘ की उपाधियाँ ग्रहण कीं |
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