History MCQ/ G.K. Free Practice Set -21 # इतिहास अभ्यास प्रश्न सेट-21

History MCQइतिहास के 25 प्रश्न के श्रृंखला की शुरुआत की गई है। यह UPSC/UPPSC/BPSC/SSC CGL/NTA NET HISTORY/RAILWAY इत्यादि के लिए बहुत ही महत्वपूर्ण प्रश्नों का संग्रह किया गया है। यह श्रंखला का लक्ष्य 1000 प्रश्नों का है। अतः सब्सक्राइव कर ले एवम् इसका लाभ उठाए।इससे आप अपने तैयारी की जांच कर सकते हैं। साथ ही यह सभी परीक्षाओं के लिए तैयार किया गया है।इसके pdf को आप हमारे वेबसाइट पर डाउनलोड कर सकते हैं

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History MCQ Set -21 (501-525)

501. 15 अगस्त, 1947 में निम्न में से कौन-सी रियासत भारत में सम्मिलित नहीं हुई थी ?

(a) जूनागढ़
(b) जम्मू और कश्मीर
(c) हैदराबाद
(d) उपरोक्त सभी
उत्तर- (d) व्याख्या-15 अगस्त, 1947 ई. में जूनागढ़, जम्मू कश्मीर और हैदराबाद में से कोई भी रियासत भारत में सम्मिलित नहीं हुई थी।
502. कलकत्ता में सर्वोच्च न्यायालय की स्थापना हुई थी ?  

(a) 1773 के नार्थ रेग्यूलेटिंग एक्ट के द्वारा (b) 1784 के पिट्स इण्डिया एक्ट के द्वारा
(c) 1793 के चार्टर एक्ट के द्वारा
(d) 1813 के चार्टर एक्ट के द्वारा  
उत्तर- (a) व्याख्या- कलकत्ता में सर्वोच्च न्यायालय की स्थापना 1773 के नार्थ रेग्यूलेटिंग एक्ट के द्वारा हुई। ब्रिटिश सरकार ने कम्पनी में व्याप्त भ्रष्टाचार एवं कुप्रशासन को दूर करने के लिए 1773 ई. का रेग्यूलेटिंग एक्ट पारित किया। इस एक्ट के अन्तर्गत मद्रास एवं बम्बई प्रेसीडेन्सियों को कलकत्ता प्रेसीडेन्सी के आधीन कर दिया जिसका प्रमुख गवर्नर जनरल होता था। गवर्नर जनरल का नियन्त्रण अपूर्व था। गवर्नर जनरल की परिषद में चार सदस्य थे। सम्पूर्ण कलकत्ता प्रेसीडेन्सी का प्रशासन तथा सैनिक शक्ति इसी सरकार में निहित थी। रेग्यूलेटिंग एक्ट के द्वारा कलकत्ता में एक सुप्रीमकोर्ट की स्थापना की गई, इसमें एक मुख्य न्यायाधीश तथा तीन अपर न्यायाधीश होते थे। रेग्यूलेटिंग एक्ट के द्वारा पहली बार ब्रिटिश मण्डल को भारतीय मामलों में नियन्त्रण का अधिकार दिया गया जो कि अपूर्ण था। रेग्यूलेटिंग एक्ट ने एक इमानदार शासन का आधारभूत सिद्धान्त निश्चित किया। सुप्रीम कोर्ट के निर्णय के विरुद्ध अपील प्रिवी काउंसिल में की जा सकती थी। गवर्नर जनरल की परिषद को कोर्ट विलियम बस्ती के प्रशासन करने के लिए भी शक्ति प्राप्त थी।    
503. अवध के स्वायत्तशासी राज्य का संस्थापक था-

(a) अहमद शाह अब्दाली
(b) सफदरजंग
(c) सआदत खाँ बुरहान-उल-मुल्क
(d) जुल्फिकार खाँ  
उत्तर- (c) व्याख्या- अवध के स्वायत्तशासी राज्य का संस्थापक सआदत खाँ बुरहान-उल-मुल्क था। यह शिया मतावलम्बी तथा निशापुर के सैयदों का वंशज था। 1720 ई. में उसे बयाना का फौजदार बनाया गया। सैयद बन्धुओं के विरुद्ध षड्यन्त्र में यह भी सम्मिलित हुआ था। अतः इसे 5,000 का मनसब तथा बुरहानुलमुल्क की उपाधि दी गई। वह 1720 ई. से 1722 ई. तक आगरा का सूबेदार रहा तथा इस दौरान उसे जाटों के विद्रोह से जूझना पड़ा। तत्पश्चात् उसे अवध का सूबेदार बनाया गया जहाँ उसने अनौपचारिक रूप से अपने स्वतन्त्र राज्य की स्थापना की।
504. बंगाल के निम्नलिखित शासकों का सही कालानुक्रम क्या है ?

1. शुजाउद्दीन
2. मुर्शिद कुली खान
3. सरफराज़ खान
4. अलीवर्दी खान

नीचे दिए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिए

(a) 2, 1, 3, 4
(b) 1, 2, 4, 3
(c) 2, 1, 4, 3
(d) 1, 2, 3, 4
उत्तर- (a) व्याख्या— सही कालानुक्रम इस प्रकार है—

मुर्शिद कुली खान- 1713-1727 ई.
शुजाउद्दीन खाँ-1727-1739 ई.
सरफराज खान- 1739-1740 ई.
अलीवर्दी खान- 1740-1756 ई.
505. नादिरशाह ने भारत पर आक्रमण किया-

(a) 1736 ई. में
(b) 1739 ई. में
(c) 1740 ई. में
(d) 1741 ई. में  
उत्तर-(b) : व्याख्या नादिरशाह ने 1739 ई. में भारत पर आक्रमण किया। यह ईरान का शासक था, जिसका नाम भारतीय इतिहास में लुटेरे तथा हत्यारे के रूप में काले अक्षरों में आता है, वह 1733 ई. में ईरान की गद्दी पर बैठा। 1738 ई. में उसने कन्धार पर अधिकार किया। इसी वर्ष उसने भारत पर आक्रमण करने का निश्चय किया। इस समय भारत में मुहम्मदशाह मुगल सम्राट था। किन्तु वह नादिरशाह के विरुद्ध कोई सहायता न जुटा सका। उसने फरवरी 1739 ई. में करनाल में नादिरशाह का सामना किया किन्तु परास्त हुआ और बन्दी बना लिया गया। नादिरशाह ने 20 मार्च, 1739 को दिल्ली में प्रवेश किया। कुछ ईरानी सैनिकों की हत्या से क्रुद्ध होकर नादिरशाह ने 23 मार्च को कत्लेआम का आदेश दिया, तथा उस दिन ईरानी सेनाओं ने दिल्ली में 30,000 लोगों को मौत के घाट उतार दिया। यह मानवीय इतिहास की सर्वाधिक कलंकित घटनाओं में थी। उसने मुहम्मद शाह से सिन्धु नदी के पार के प्रदेश छीन लिए तथा बड़ी भारी मात्रा में दिल्ली से लूट का धन, जिनमें तख्ते ताऊस भी सम्मिलित था, लेकर ईरान लौटा, जो 15 करोड़ रुपए के लगभग था। नादिरशाह को अपनी करनी का फल मिला तथा आठ वर्ष बाद ही मानसिक रूप से विक्षिप्त हो गया, एवं 1747 ई. में अफगानों ने छुरा घोंपकर उसकी हत्या कर दी।
506. ईस्ट इण्डिया कम्पनी को किस मुगल सम्राट से दीवानी का अधिकार प्राप्त हुआ ?  

(a) जहाँगीर
(b) औरंगजेब
(c) शाह आलम II
(d) इनमें में से कोई नहीं
उत्तर-(c) व्याख्या- ईस्ट इण्डिया कम्पनी को मुगल सम्राट शाह आलम II से दीवानी का अधिकार प्राप्त हुआ।  
507. भारत में रेलों का प्रचलन हुआ था—

(a) लॉर्ड डलहौजी के समय में
(b) लॉर्ड कैनिंग के समय में
(c) लॉर्ड हॉर्डिंग के समय में
(d) विलियम बैन्टिक के समय में
उत्तर- (a) व्याख्या- लॉर्ड डलहौजी के समय में भारत में रेलों का प्रचलन हुआ था। डलहौजी को भारत में रेलवे का जनक माना जाता है। उन्हीं के प्रयासों से 1853 ई. में महाराष्ट्र में बम्बई से थाणे तक प्रथम रेलगाड़ी चलायी गई थी। रेल व्यवस्था डलहौजी के व्यक्तिगत प्रयासों का परिणाम था। अंग्रेजों ने इसमें अत्यधिक पूँजी लगाई थी।
508. स्थायी बन्दोबस्त लागू किया गया ? 

(a) 1774 ई. में
(b) 1790 ई. में
(c) 1791 ई. में
(d) 1793 ई. में
उत्तर- (d) व्याख्या-स्थायी बन्दोबस्त 1793 ई. में लागू किया गया। इसके अन्तर्गत समूचे ब्रिटिश भारत के क्षेत्रफल का लगभग 19% हिस्सा शामिल था। यह व्यवस्था बंगाल, बिहार, उड़ीसा तथा उत्तर प्रदेश के वाराणसी तथा उत्तरी कर्नाटक के क्षेत्रों में लागू था। इस व्यवस्था के अन्तर्गत जमींदार जिन्हें भू-स्वामी के रूप में मान्यता प्राप्त थी, को अपने क्षेत्रों में भू-राजस्व के रूप में मान्यता प्राप्त थी, को अपने क्षेत्रों में भू-राजस्व वसूली कर उसका दसवाँ अथवा ग्यारहवाँ हिस्सा अपने पास रखना होता था, और शेष हिस्सा कम्पनी के पास जमा कराना होता था। इस व्यवस्था के अन्तर्गत जमींदार काश्तकारों से मनचाहा लगान वसूल करता था, और समय से लगान न देने वाले काश्तकारों से जमीन भी वापस छीन ली जाती थी, कुल मिलाकर काश्तकार पूरी तरह से जमींदारों की दया पर निर्भर होता था। इस व्यवस्था के लाभ के रूप में कम्पनी की आय का एक निश्चित हिस्सा तय हो गया, जिस पर फसल नष्ट होने का कोई असर नहीं पड़ता था।
509. रामकृष्ण मिशन की स्थापना किसने की थी ?  

(a) दयानन्द
(b) गोपालकृष्ण गोखले
(c) स्वामी विवेकानन्द
(d) महात्मा गाँधी
उत्तर-(c) व्याख्या- वेलूर में 1897 ई. में विवेकानन्द ने ‘रामकृष्ण मिशन’ की स्थापना की। स्वामी विवेकानन्द ने 18931 में शिकागो में हुई धर्मों की संसद में भाग लिया। इन्होंने 1887 ई. में ‘बारानगर में मठ’ की स्थापना की। अंग्रेजी मासिक पत्रिका ‘प्रबुद्ध भारत’ और बंगाल में पाक्षिक पत्रिका ‘उद्बोधन’ चलाई। 1899 ई. में अमेरिका पहुँचे और 1900 ई. में ‘कांग्रेस ऑफ द हिस्ट्री ऑफ रिलिजियन्स’ में (पेरिस) भाषण दिया। इन्होंने सर्व धर्म समानता की घोषणा की। सुभाष चन्द्र बोस ने कहा था कि- जहाँ तक बंगाल का सम्बन्ध है हम विवेकानन्द को ‘आधुनिक राष्ट्रीय आन्दोलन का आध्यात्मिक पिता’ कह सकते हैं।  
510. भारत में सर्वप्रथम प्रकाशित होने वाला समाचार पत्र था-  

(a) बंगाल गजट
(b) कलकत्ता गजट
(c) द हिन्दू
(d) कलकत्ता क्रॉनिकल  
उत्तर- (a) व्याख्या- भारत में सर्वप्रथम प्रकाशित होने वाला समाचार-पत्र बंगाल गजट था। भारत में प्रथम समाचार-पत्र निकालने का श्रेय ‘जेम्स आगस्टस हिक्की’ को जाता है। इन्होंने 1780 ई. में ‘द. बंगाल गजट’ का प्रकाशन किया किन्तु कम्पनी के कुछ अधिकारियों की आलोचना करने के कारण इनका प्रेस जब्त कर लिया गया। जेम्स ऑगस्टस हिक्की द्वारा 1780 ई. में प्रकाशित ‘The Bengal Gazette’ अथवा The Calcutta General Advertiser’ को भारत का प्रथम अखबार माना जाता है। 1780 ई. में प्रकाशित ‘इण्डिया गजट’ पत्र था।
511. बंगाल की एशियाटिक सोसायटी की स्थापना की थी-  

(a) राममोहन राय ने
(b) सर विलियम जोन्स ने
(c) डब्ल्यू.डब्ल्यू. हन्टर ने
(d) विलियम बेंटिंक ने  
उत्तर-(b) व्याख्या- बंगाल की एशियाटिक सोसायटी की स्थापना सर विलियम प्र जोन्स ने की थी।
512. सत्यशोधक समाज की स्थापना की थी-  

(a) जोतिबा फुले ने
(b) श्री नारायन गुरु ने
(c) गोपाल बाबु वलोंग ने
(d) भास्कर राव जादव ने  
उत्तर- (a) व्याख्या- सत्यशोधक समाज की स्थापना ज्योतिबा फुले ने 1873 ई. में की थी। ये 19वीं सदी के महान् समाज सुधारक थे। इनका जन्म 1872 ई. में महाराष्ट्र के पुरन्दर में हुआ था। उनकी प्रारम्भिक शिक्षा पूना में हुई थी। वे अछूत जाति के थे तथा सामाजिक समानता के लिए संघर्ष करने वाले आरम्भिक सुधारकों में से थे। वे स्त्रियों की शिक्षा के प्रबल समर्थक थे, तथा 1848 ई. में अपनी पत्नी सावित्री देवी के सहयोग से उन्होंने निम्न वर्ग की बालिकाओं के लिए पूना में विद्यालय स्थापित किया। उन्होंने अस्पृश्यता के उन्मूलन व हरिजनों के उत्थान के लिए संघर्ष किया तथा, 1851 ई. में हरिजनों के लिए एक विद्यालय स्थापित किया। उन्होंने गरीब स्त्रियों के लिए एक प्रसूति गृह भी स्थापित किया। उन्होंने विधवा विवाह का समर्थन किया। उन्होंने सामाजिक कुरीतियों के विरोध में अनेक पुस्तकें लिखी, जिनमें ‘गुलामगिरी’ प्रमुख है। 1884 ई. में ‘दीनबन्धु सार्वजनिक सभा’ की नींव रखी।
513. विधवाओं के पुनर्विवाह के लिए निम्नलिखित में से किसने संघर्ष किया ?

(a) लाला लाजपत राय
(b) दयानन्द सरस्वती
(c) विवेकानन्द
(d) ईश्वर चन्द्र विद्यासागर  
उत्तर- (d) व्याख्या- विधवाओं के पुनर्विवाह के लिए ईश्वर चन्द्र विद्यासागर ने संघर्ष किया था। विद्यासागर 19 वीं सदी के महान् बंगाली विद्वान् समाज सुधारक थे। उनका जन्म एक गरीब परिवार में 1820 ई. में हुआ था। वे संस्कृत के एक महान् विद्वान् थे, तथा पश्चिमी उदारवादी दर्शन का भी उन्हें अच्छा ज्ञान था। वे देश में शिक्षा की पिछड़ी स्थिति से असन्तुष्ट थे तथा शिक्षा प्रसार हेतु अथक प्रयत्न किए। विशेष रूप से स्त्रियों के लिए इन्होंने अनेक शिक्षण संस्थाओं की स्थापना की, उन्होंने विधवा पुनर्विवाह के पक्ष में जोरदार आन्दोलन चलाया तथा बहुत कुछ इनके प्रयत्नों के कारण ही 1856 ई. में विधवा पुनर्विवाह अधिनियम पारित किया गया। इन्होंने सोम प्रकाश नामक समाचार-पत्र निकाला।
514. जेम्स हिक्की का सम्बन्ध था-

(a) कलकत्ता गजट से
(b) ओरिएन्टल मैगजीन ऑफ कलकत्ता से
(c) बंगाल गजट से
(d) बम्बई हेरल्ड से  
515. मोपला विद्रोह के क्या कारण थे ?  

(a) आर्थिक
(b) धार्मिक
(c) सामाजिक
(d) राजनीतिक  
उत्तर- (a) व्याख्या- मोपला विद्रोह के आर्थिक कारण थे। अगस्त 1921 में. केरल के मालाबार जिले के काश्तकारों ने जमींदारों के खिलाफ विद्रोह कर दिया। यह विद्रोह 19वीं सदी के मोपिला विद्रोह से अलग था। अप्रैल 1920 में (मंजेरी में हुए मालाबार कांग्रेस सम्मेलन ने इस आन्दोलन को उकसाया। कालान्तर में मोपला विद्रोही और खिलाफत आन्दोलनकारी एक साथ हो गए। गाँधी जी, शौकत अली और मौलाना आजाद ने विद्रोह वाले क्षेत्रों की यात्रा कर विद्रोहियों का समर्थन किया। 15 फरवरी, 1921 को सरकार ने निषेधाज्ञा लागू कर खिलाफत तथा कांग्रेस के नेता याकूब हसन यू गोपाल मेनन, पी. मोईद्दीन कोया और के. माधवन नायर को गिरफ्तार कर लिया। परिणामस्वरूप आन्दोलन का नेतृत्व पुनः मोपला नेताओं के हाथ से चला गया। खिलाफत के नेता तथा स्थानीय मुसलमानों के धार्मिक गुरु अली मुसलियार को गिरफ्तार करने के प्रयास में एक मस्जिद पर मारे गए छापे के विरोध ने मोपलाओं के आन्दोलन को तेज कर दिया। ‘तिरुरागड़ी’ में एकत्र मोपलाओं की भीड़ जो खिलाफत आन्दोलन के नेताओं को छुड़वाने की 5 अधिकारियों से माँग कर रही थी, उस पर गोली चलाई गई। कई आन्दोलनकारी मारे गए। परिणामस्वरूप आन्दोलनकारी भी संघर्ष पर उतर गए। सरकारी दस्तावेजों, सरकारी दफ्तरों को जला दिया गया, खजाने लूटे गए। सरकार ने मजबूरन आन्दोलन को कुचलने के लिए सैनिक शासन की घोषणा कर दी। कुछ हिन्दुओं द्वारा सरकार का साथ देने के कारण मोपलाओं में पहले से ही सुलग रही हिन्दू विरोधी भावना भड़क उठी। इस तरह यह आन्दोलन साम्प्रदायिकता के रंग में रंग गया। साम्प्रदायिकता ने मोपलाओं को सबसे अलग कर दिया, अब सरकार के लिए मोपलाओं को कुचलना सरल हो गया, दिसम्बर 1921 तक मोपला विद्रोह कुचल दिया गया।
516. 1857 ई. के विद्रोह के समय बिहार में नेतृत्व किसने सम्भाला ?

(a) गोधुम कुँअर
(b) बाबु कुँअर सिंह
(c) नाना साहेब
(d) इनमें से कोई नहीं  
उत्तर-(b) व्याख्या-1857 ई. के विद्रोह के समय बिहार में नेतृत्व बाबू कुँअर सिंह ने सम्भाला था। ये 1857 ई. के गदर के महान विद्रोही थे। यह बिहार में जगदीशपुर (शाहाबाद जिले में स्थित) के जमींदार थे तथा गदर के समय उनकी आयु 70 वर्ष थी। उसने आजमगढ़ क्षेत्र के युद्ध में अंग्रेजों को बुरी तरह परास्त किया। तत्पश्चात् 22 अप्रैल, 1858 को कुँवर सिंह ने जगदीशपुर पर, जिस पर गदर के दौरान अंग्रेजों ने अधिकार कर लिया था, पुनः अधिकार कर लिया। इसके 24 घण्टे बाद ही आरा से लीग्रेण्ड के अधीन अंग्रेजों एवं सिख सेना ने जगदीशपुर पर आक्रमण कर दिया, किन्तु उन्हें शिकस्त का सामना करना पड़ा। तीन दिन बाद कुँवर सिंह की स्वतन्त्र अवस्था में ही मृत्यु हो गई थी। इस समय जगदीशपुर स्वतन्त्र था। समूचे भारत में अंग्रेजों के विरुद्ध सफल विद्रोह करने वाला तथा अंग्रेजों को बार-बार परास्त करने वाला एकमात्र वीर कुँवर सिंह ही था। उसकी सफलता से खीजकर उसकी मृत्यु के बाद अंग्रेजों ने जगदीशपुर के महलों तथा मन्दिरों को नष्ट कर दिया।
517. कूका विद्रोह कहाँ हुआ ?  

(a) पंजाब
(b) राजस्थान
(c) अवध
(d) बंगाल
उत्तर- (a) व्याख्या— कूका विद्रोह पंजाब में हुआ था। कूका आन्दोलन की शुरूआत पश्चिमी पंजाब में भगत जवाहर मल ने 1840 ई. में की थी। भगत जवाहरमल सियान साहब के नाम से चर्चित थे। इस आन्दोलन का मुख्य उद्देश्य सिख धर्म में व्याप्त अन्धविश्वासों और बुराइयों को दूर करना था। कूका आन्दोलन वहाबी आन्दोलन से कुछ मिलता-जुलता था। वहाबी आन्दोलन की भाँति कूका आन्दोलन ने भी एक धार्मिक आन्दोलन के रूप में शुरू होकर बाद में राजनीतिक रूप ले लिया। जवाहरमल के शिष्य बालक सिंह ने अपने अनुयायियों का एक दल गठित किया और उत्तर-पश्चिमी सीमान्त प्रान्त में हाजरों को अपना मुख्यालय बनाया। कूका आन्दोलन के सामाजिक सुधारों में जाति और अन्तर्जातिय विवाहों पर लगे प्रतिबन्धों को समाप्त करना, मांस, मदिरा एवं नशीली वस्तुओं का सेवन न करना तथा महिलाओं द्वारा पर्दा का त्याग करना शामिल था। पंजाब में अंग्रेजों की विजय के पश्चात् सिखों को पुनर्स्थापित करना इस आन्दोलन का मुख्य लक्ष्य था। बाद के समय में जब कूका आन्दोलन ने अपना राजनीतिक रूप धारण कर लिया तो इससे अंग्रेजों को काफी चिन्ता हुई। फलस्वरूप अंग्रेजों ने 1863 और 1872 ई. के दौरान इस आन्दोलन को कुचलने के उपाय किए। बाद में इस आन्दोलन के एक नेता रामसिंह को रंगून निर्वासित कर दिया गया जहाँ 1885 ई. में उसकी मृत्यु हो गई। राम सिंह की मृत्यु के बाद यह आन्दोलन समाप्त हो गया।
518. नील आन्दोलन कहाँ हुआ ?

(a) बिहार
(b) बंगाल
(c) मध्य प्रदेश
(d) अवध
उत्तर-(b) व्याख्या-नील आन्दोलन बंगाल में हुआ था। अपनी आर्थिक माँगों को लेकर किए गए आन्दोलन में सर्वाधिक जुझारू और व्यापक आन्दोलन बंगाल का नील विद्रोह था। शोषण के विरुद्ध यह किसानों की सीधी लड़ाई थी। नील विद्रोह, अंग्रेजों के शासनकाल में किसानों का पहला जुझारू और संगठित विद्रोह था। सर्वप्रथम नील आन्दोलन की शुरूआत सितम्बर, 1859 में बंगाल के नदिया जिले में स्थित गोविन्दपुर गाँव से हुई थी। इस आन्दोलन के नेता दिगम्बर विश्वास और विष्णु विश्वास थे। दिगम्बर विश्वास और विष्णु विश्वास के नेतृत्व में वहाँ के किसानों ने एकजुट होकर नील की खेती बन्द कर दी। 1860 ई. तक नील आन्दोलन, नदिया, पाबना, खुलना, ढाका, राजशाही, मालदा तथा दीनाजपुर क्षेत्रों में फैल गया। किसानों की एकजुटता के कारण 1860 ई. के अन्त तक बंगाल में नील की खेती पूरी तरह से बन्द कर दी गई। नील आन्दोलन भारत में बुद्धिजीवियों का सहयोग पाने वाला सबसे पहला व्यापक आन्दोलन था। ‘हिन्दू पैट्रियट’ के सम्पादक ‘हरिश्चन्द्र मुखर्जी’ ने इस आन्दोलन में महत्त्वपूर्ण भूमिका अदा की। नील बगान मालिकों के अत्याचार का खुला चित्रण ‘दीनबन्धु मित्र’ ने अपने ‘नील दर्पण’ में किया। 31 मार्च, 1860 को नील आयोग की नियुक्ति की गई। आयोग के सुझाव पर अधिसूचना जारी की गई कि किसी भी रैयत को नील की खेती के लिए विवश नहीं किया जाएगा और सारे विवादों का निपटारा कानूनी ढंग से ही होगा। नील आन्दोलन के सफल होने का सबसे प्रमुख कारण किसानों में अनुशासन, एकता तथा सहयोग की भावना थी।
519. निम्नलिखित में से कौन-सा विद्रोह सिद्धू और कान्हू से सम्बद्ध है ?  

(a) सन्थाल विद्रोह, 1885 ई.
(b) कोल विद्रोह, 1820-1837 ई.
(c) मुण्डा विद्रोह, 1899-1900 ई.
(d) उड़ीसा जमींदारों का विद्रोह, 1804-1817 ई.  
उत्तर- (a)व्याख्या- सन्थाल विद्रोह (1855-56) सिद्धू और काहू से सम्बद्ध है। सन्थाल आदिवासियों का विद्रोह आदिवासी विद्रोहों में सर्वाधिक जबर्दस्त था। यह विद्रोह मुख्यत: भागलपुर से राजमहल के बीच केन्द्रित था। सन्थाल लोगों ने भूमिकर अधिकारियों के हाथों दुर्व्यवहार, पुलिस के दमन, जमींदारों-साहूकारों की वसूलियों के विरुद्ध अपना शेष प्रकट करते हुए विद्रोह किया। इस समय गैर-आदिवासियों को जो आदिवासियों के क्षेत्र में प्रवेश कर उनके साथ ज्यादतियाँ किया करते थे, को ‘दिक्’ नाम से सम्बोधित किया गया। विद्रोह का प्रारम्भ 30 जून, 1855 को भगनीडीह ग्राम से हुआ। विद्रोह के नेता सिद्धू और कान्हू नामक दो भाई थे। 30 जून, 1855 को दोनों ने भगनीडीह ग्राम में सन्थालों की एक आम सभा बुलाई। इस सभा में 7,000 सन्थालों ने भाग लिया। सिद्धू ने अपने आपको दैवीय पुरुष बतलाया। उसने घोषणा की कि ठाकुर जी (भगवान) ने उन्हें आदेश दिया है कि वे आजादी के लिए हथियार उठा लें। विद्रोह के दौरान सन्थालों ने अत्याचारी दरोगा महेश लाल की हत्या कर दी। विद्रोह का विस्तार वीरभूम, बांकुड़ा, सिंहभूम, हजारीबाग, भागलपुर तथा मुंगेर आदि क्षेत्रों तक फैला। विद्रोहियों ने साहूकारों, जमींदारों, गोर बागान मालिकों, रेलवे इन्जीनियरों और अंग्रेज अधिकारियों के घरों पर हमले किए। भागलपुर और राजमहल के बीच, रेल, डाक और तार सेवा भंग कर दी गई। विद्रोहियों को दबाने के लिए कलकत्ता के मेजर बारों के अधीन सेना भेजी गई, किन्तु बारों पराजित हुआ। बारों के पराजित होने के बाद भागलपुर और पूर्णिया से घोषणा-पत्र निकाल कर सन्थालों के विद्रोह को दमन करने का निर्देश दिया गया। अन्त में 1856 ई. में भागलपुर के कमिश्नर ब्राउन और मेजर जनरल लॉयड ने क्रूरतापूर्वक विद्रोह का दमन कर दिया। 1856 ई. में सिद्धू और कान्हू को पकड़ लिया गया। और उन्हें गोली मार दी गई।
520. 1857 ई. के विद्रोह से तत्काल पूर्व निम्नलिखित में से कौन-सा विद्रोह झारखण्ड में हुआ ?  

(a) कोल विद्रोह
(b) सन्थाल हूल
(c) बिरसा विद्रोह
(d) भूमिज विद्रोह
उतर-(b) व्याख्या-1857 ई. के विद्रोह से तत्काल पूर्व सन्थाल हूल विद्रोह झारखण्ड में हुआ। आदिवासी विद्रोहों में सन्थाल विद्रोह सर्वाधिक शक्तिशाली था। विद्रोह का प्रारम्भ 30 जून, 1855 को भगनीडीह ग्राम से हुआ था। इस विद्रोह के नेता सिद्ध और कान्हू नामक दो भाई था 30 जून, 1855 को सिद्धू और कान्हू ने भगनीडीह ग्राम में सन्थालों की एक आम सभा बुलाई। इस सभा में 7,000 सन्थालों ने भाग लिया था। सिद्धू ने अपने आपको दैवीय पुरुष बताया। उसने घोषणा की कि ठाकुर जी (भगवान) ने उन्हें आदेश दिया है कि वे आजादी के लिए हथियार उठा से। सन्थालों ने अंग्रेजी शासन की समाप्ति की घोषणा कर दी और अपना स्वतन्त्र शासन स्थापित किया। विद्रोहियों को दबाने के लिए कलकत्ता के मेजर बारों के अधीन सेना भेजी गई। किन्तु बारों पराजित हुआ। अन्त में 1856 ई. में भागलपुर के कमिश्नर ब्राउन और मेजर जनरल लॉयड ने क्रूरतापूर्वक विद्रोह का दमन कर दिया। 1856 में सिद्धू और कान्हू को पकड़ लिया गया और उन्हें गोली मार दी गई।
521. ‘गदर पार्टी’ के संस्थापक कौन थे ?  

(a) भगत सिंह
(b) लाला हरदयाल
(c) सी.आर. दास
(d) पण्डित काशीराम  
उत्तर-(b) व्याख्या- ‘गदर पार्टी’ के संस्थापक लाला हरदयाल थे। क्रान्तिकारी आतंकवादी आन्दोलन के प्रथम चरण में अनेक भारतीय संयुक्त राज्य अमेरिका और कनाडा में बस गए थे। इन लोगों ने वहाँ से समाचार-पत्रों का प्रकाशन किया। 1907 ई. रामनाथपुरी ने सर्कुलर-ए-आजादी तथा वैंकुअर से तारकनाथ दास ने ‘फ्री हिन्दुस्तान’ का प्रकाशन किया। ये अखबार राष्ट्रीय भावना से ओतप्रोत थे। संयुक्त राज्य अमेरिका में रह रहे भारतीय तारकनाथ दास ने 1907 ई. में कैलिफोर्निया में (‘भारतीय स्वतन्त्रता लीग का गठन किया। नवम्बर 1913 में सोहन सिंह भाकना ने हिन्द एसोसिएशन ऑफ अमेरिका की स्थापना की। इस संस्था ने कालान्तर में अंग्रेजी, उर्दू, मराठी और पंजाबी में एक साथ गदर या हिन्दुस्तान गदर (1857 के विद्रोह की स्मृति में) का प्रकाशन किया। गदर पत्रिका के नाम पर ही ‘हिन्द एसोसिएशन ऑफ अमेरिका’ का नाम ‘गदर आन्दोलन’ पड़ा। लाला हरदयाल जो 1911 ई. से कैलिफोर्निया के स्टेनफोर्ड विश्वविद्यालय में अध्यापन कार्य कर रहे थे, 1913 ई. में गदर संस्था से  जुड़ गए, ये इस संस्था के मनीषी पथ प्रदर्शक थे। गदर आन्दोलन ने सैन फ्रांसिस्को) में युगान्तर आश्रम की स्थापना की और यहीं से अपनी गतिविधियों का संचालन किया। उर्दू और गुरुमुखी भाषा के गदर के अंकों में शस्त्र धारण कैसे करें, बगावत करने तथा अंग्रेज अधिकारियों की हत्या के लिए प्रोत्साहित करने वाली कविताओं का प्रकाशन होता था। लाला हरदयाल, भाई परमानन्द और रामचन्द्र गदर पार्टी के प्रमुख नेताओं में से थे।
522. ब्रिटिश सरकार के विरुद्ध खिलाफत आन्दोलन प्रारम्भ करने का निम्नलिखित में से कौन मुख्य कारण था ?  

(a) 1919 का अधिनियम मुसलमानों के हित पर ध्यान नहीं दिया
(b) तुर्की के साथ मित्र राष्ट्रों की अपमानजनक सन्धि
(c) भारतीय वायसराय द्वारा हिन्दुओं को सुविधा प्रदान करना
(d) उपरोक्त में से कोई नहीं
उत्तर-(b) व्याख्या- ब्रिटिश सरकार के विरुद्ध खिलाफत आन्दोलन प्रारम्भ करने का मुख्य कारण तुर्की के साथ मित्र राष्ट्रों की अपमानजनक सन्धि थी। विशाल ऑटोमन साम्राज्य का शासक तुर्की का सुल्तान पूरे इस्लाम जगत का खलीफा था। प्रथम विश्वयुद्ध में तुर्की ब्रिटेन के विरुद्ध मित्र राष्ट्रों के साथ लड़ रहा था। युद्ध में तुर्कों की पराजय के बाद ब्रिटिश सरकार ने तुर्की साम्राज्य का विघटन कर दिया। अब खलीफा केवल एक छोटे से राज्य का स्वामी बनकर रह गया था। तुर्कों और खलीफा के साथ इस बर्ताव से पूरे विश्व के मुसलमान आहत हुए और संगठित होकर ब्रिटिश सत्ता के विरुद्ध एक आन्दोलन खड़ा कर दिया, जो इतिहास में खिलाफत आन्दोलन के नाम से प्रसिद्ध है। खिलाफत आन्दोलन मूलतः प्रतिक्रियावादी था, किन्तु अन्तर्राष्ट्रीय और राष्ट्रीय क्रान्तिकारी परिस्थितियों ने इसके स्वरूप को परिवर्तित कर, उसे साम्राज्यवाद विरोधी और राष्ट्रीय आन्दोलन का एक अंग बना दिया। गाँधी जी के समर्थन के बाद खिलाफत आन्दोलन ने और अधिक जोर पकड़ लिया। गाँधी जी ने खिलाफत आन्दोलन को हिन्दू-मुस्लिम एकता का एक सुनहरा अवसर माना। मोतीलाल नेहरू की अध्यक्षता में 1919 ई. में कांग्रेस के अमृतसर अधिवेशन में खिलाफत आन्दोलन को और अधिक बढ़ावा मिला। 24 नवम्बर, 1919 को दिल्ली में खिलाफत कमेटी का सम्मेलन हुआ जिसकी अध्यक्षता गाँधी जी ने की थी। 17 अक्टूबर, 1919 को प्रभावशाली ढंग से अखिल भारतीय स्तर पर ‘खिलाफत दिवस’ मनाया गया। 16 अगस्त, 1920 को सीवर्स की सन्धि के बाद तुर्की का विभाजन हो गया। गाँधी जी ने खिलाफत कमेटी को असहयोग आन्दोलन का सुझाव दिया। कमेटी द्वारा गाँधी जी का सुझाव स्वीकार कर लिया गया। खिलाफत कमेटी के सदस्यों में हकीम अजमल खाँ, डॉ. मुख्तार अहमद अन्सारी, मौलाना हसन, अब्दुल बारी, मौलाना अबुल कलाम आजाद, मोहम्मद अली तथा शौकत अली प्रमुख थे।
523. सुभाष चन्द्र बोस को INA ( आजाद हिन्द फौज) का नेतृत्व सौंपा गया-

(a) 1941 ई. में
(b) 1942 ई. में
(c) 1943 ई. में
(d) 1944 ई. में  
उत्तर-(c) व्याख्या- सुभाष चन्द्र बोस को INA ( आजाद हिन्द फौज) का नेतृत्व सौंपा गया। ब्रिटिश सरकार ने 2 जुलाई, 1940 को भारत सुरक्षा कानून के अन्तर्गत सुभाषचन्द्र बोस को गिरफ्तार कर कलकत्ता के प्रेसीडेन्सी जेल में बन्द कर दिया। जेल में अनशन के कारण सुभाषचन्द्र बोस की स्थिति नाजुक होने के कारण 5 दिसम्बर, 1940 को उन्हें रिहा कर कलकत्ता स्थित एल्गिन रोड के उनके निवास स्थान पर नजरबन्द कर दिया गया। 17 जनवरी, 1941 को सुभाषचन्द्र बोस चमत्कारी ढंग से गायब हो गए और अफगानिस्तान, पेशावर, काबुल तथा मास्को होते हुए जर्मनी पहुँचे। जर्मनी में सुभाषचन्द्र बोस ने हिटलर से मुलाकात कर भारतीय स्वतन्त्रता के लिए सहयोग माँगा । बर्लिन (जर्मनी) के रेडियो केन्द्र से सुभाष चन्द्र बोस ने ब्रिटिश विरोधी प्रचार किया। टोकियो सम्मेलन में रास बिहारी बोस ने जापान में रह रहे भारतीय सेना के अफसरों द्वारा भारतीय राष्ट्रीय सेना संगठित करने का प्रस्ताव पास किया। इस सेना का उद्देश्य भारत की मुक्ति के लिए युद्ध करना था। टोकियो सम्मेलन में रास बिहारी बोस ने इण्डियन नैशनल आर्मी का गठन किया। 2 जुलाई, 1943 को सुभाष चन्द्र बोस सिंगापुर पहुँचे, 4 जुलाई, 1943 को रास बिहारी बोस ने उन्हें आजाद हिन्द फौज का सर्वोच्च सेनापति घोषित किया।
524. पुस्तक ‘इण्डिया विन्स फ्रीडम’ किसने लिखी ?  

(a) जवाहरलाल नेहरू
(b) मोतीलाल नेहरू
(c) मौलाना अबुल कलाम आजाद
(d) उपरोक्त में से कोई नहीं  
उत्तर-(c)व्याख्या- पुस्तक ‘इण्डिया विन्स फ्रीडम’ मौलाना अबुल कलाम आजाद ने लिखी है। 1888 ई. में मक्का में जन्मे आजाद 1898 ई. में अपने पिता के साथ भारत आए तथा कलकत्ता में बस गए, इन्हें इस्लाम धर्म के सम्बन्ध में गहन ज्ञान था। आजाद ने 1912 ई. में उर्दू समाचार पत्र ‘अल हिलाल’ तत्पश्चात् ‘अल वलघ’ निकाले तथा इसके द्वारा राष्ट्रवादी भावनाओं को अभिव्यक्ति दी। गाँधी के नेतृत्व में चलाए गए कांग्रेस के विभिन्न कार्यक्रमों में सक्रिय भूमिका निभाई। वे 1940 ई. में कांग्रेस के रामगढ़ अधिवेशन के सभापति बने तथा कांग्रेस की ओर से शिमला सम्मेलन में भाग लिया। उन्होंने भारत विभाजन का विरोध किया तथा स्वतन्त्र भारत में शिक्षा मन्त्री बने। उन्होंने कई ग्रन्थ लिखे जिनमें ‘इण्डिया विन्स फ्रीडम’ उनकी विवादास्पद रचना है, वे राष्ट्रवादी मुसलमान तथा हिन्दू-मुस्लिम एकता के समर्थक थे। 1958 ई. में उनका निधन हो गया।
525. कांग्रेस ने किस गोल मेज सम्मेलन में भाग लिया ?

(a) प्रथम
(b) द्वितीय
(c) तृतीय
(d) इनमें से कोई नहीं  
उत्तर-(b) व्याख्या- कांग्रेस ने द्वितीय गोल मेज सम्मेलन में भाग लिया। दूसरा गोलमेज सम्मेलन लन्दन में 7 सितम्बर से 1 दिसम्बर, 1931 तक चला तथा इसमें कांग्रेस के प्रतिनिधि के रूप में केवल गाँधी जी ने हिस्सा लिया। दक्षिण पन्थी नेता विन्स्टन चर्चिल ने ब्रिटिश सरकार की आलोचना करते हुए कहा कि वह (सरकार) ‘देशद्रोही फकीर’ (गाँधी जी) को बराबर का दर्जा देकर बात कर रही है। द्वितीय गोलमेज सम्मेलन के समय रैम्जे मैकडोनाल्ड ब्रिटेन के प्रधान मन्त्री, दक्षिणपन्थी प्रतिक्रियावादी सैमुअल होर भारत सचिव तथा वेलिंगटन भारत के वायसराय बन चुके थे। द्वितीय गोलमेज सम्मेलन साम्प्रदायिक समस्या पर विवाद के कारण पूरी तरह असफल रहा। दलित नेता भीमराव अम्बेडकर ने दलितों के लिए पृथक् निर्वाचन मण्डल की सुविधा की माँग की जिसे गाँधी जी ने अस्वीकार कर दिया। अतः साम्प्रदायिक गतिरोध के कारण सम्मेलन को 1 दिसम्बर को समाप्त घोषित कर दिया गया। द्वितीय गोलमेज सम्मेलन में मदन मोहन मालवीय और एनी बेसेन्ट ने खुद के खर्च पर हिस्सा लिया था। “फ्रेंकमोरेस’ नामक ब्रिटिश नागरिक ने गाँधी जी के बारे में इसी समय कहा कि ‘अर्द्धनंगे फकीर’ के ब्रिटिश प्रधानमन्त्री से वार्ता हेतु सेण्टपाल पैलेस की सीढ़ियाँ चढ़ने का दृश्य अपने आप में एक अनोखा और दिव्य प्रभाव उत्पन्न कर रहा था।

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