History Objective–इतिहास के 25 प्रश्न के श्रृंखला की शुरुआत की गई है। यह यूपीएससी/यूपीपीसीएस/बीपीएससी/NTA NET HISTORY/एसएससी/रेलवे इत्यादि के लिए बहुत ही महत्वपूर्ण प्रश्नों का संग्रह किया गया है। यह श्रंखला का लक्ष्य 1000 प्रश्नों का है। अतः सब्सक्राइव कर ले एवम् इसका लाभ उठाए।इससे आप अपने तैयारी की जांच कर सकते हैं। साथ ही यह सभी परीक्षाओं के लिए तैयार किया गया है।इसके pdf को आप हमारे वेबसाइट पर डाउनलोड कर सकते हैं।
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History Objective Set -12 (276-300)
276. निम्नलिखित अंग्रेजों में से कौन तुर्की भाषा में प्रवीण था, और जिसे 400 का मनसब एवं ‘इंग्लिश खाँ’ अथवा ‘फिरंगी खाँ’ का विरुद (खिताब ) प्राप्त हुआ था ? (a) फ्रिच (b) मिल्डनहॉ (c) हॉकिन्स (d) सर टॉमस रो |
उत्तर- (c)व्याख्या- कैप्टन हॉकिन्स एक अंग्रेज व्यापारी था जो जहाँगीर के दरबार में 1609 ई. में आया था। यह जहाँगीर के दरबार में व्यापार की अनुमति लेने के लिए आया था। जहाँगीर ने इसे 400 का मनसब प्रदान किया था। यह तुर्की भाषा में प्रवीण थ। इसे ‘इंग्लिश खाँ’ अथवा ‘फिरंगी खां’ का खिताब प्राप्त हुआ था। |
277. शेरशाह द्वारा भू-राजस्व के अतिरिक्त, जनहित के उपयोग हेतु लिए जाने वाले अतिरिक्त कर का प्रतिशत (कुल भ-राजस्व देय का) कितना था ? (a) 7.5% (b) 5.0% (c) 2.5% (d) 1.5% |
उत्तर-(c) व्याख्या- शेरशाह द्वारा भू-राजस्व के अतिरिक्त, जनहित के उपयोग हेतु लिए जाने वाले अतिरिक्त कर का प्रतिशत, कुल भू-राजस्व देय का 2.5% था। शेरशाह ने भू-राजस्व व्यवस्था एवं कृषि में सुधार के लिए अनेक उपाय किए। लगान की राशि निश्चित करने के लिए शेरशाह ने राज्य की समस्त भूमि की माप करवाई। पैदावार का लगभग एक-तिहाई भाग सरकार लगान के रूप में वसूल करती थी। लगान नक़द एवं जीन्स दोनों रूपों में ही वसूला जाता था पर नकद में लेना अधिक पसन्द किया जाता था। लगान निर्धारण हेतु तीन प्रणालियाँ प्रचलन में थीं- 1. बटाई या गल्ला बक्शी 2. नश्क या मुकताई या कनकूत 3. नकदी या जब्ती या जमीं। इन तीनों प्रणालियों में किसानों द्वारा नकदी व जमई व्यवस्था को अधिक सराहा जाता था। तीन प्रकार की ‘बटाई’- 1. खेत बटाई, 2. लंक बटाई एवं, 3. रास बटाई का भी प्रचलन था। किसानों को शेरशाह के शासन काल में जरीबाना या सर्वेक्षण शुल्क एवं ‘मुहासिलाना’ या कर संग्रह शुल्क भी देना पड़ता था जिनकी दरें क्रमश: भूराजस्व की 2.5 एवं 5% थीं। इसके अलावा प्रत्येक किसान को पूरी लगान पर 2-% कर देना होता था। |
278. किस आधुनिक इतिहासकार ने सतनामी विद्रोह को औरंगजेब की धार्मिक नीतियों के विरोध में ‘हिन्दू प्रतिक्रिया’ की संज्ञा दी है? (a) आर. सी. मजूमदार (b) ईश्वरी प्रसाद (c) वी.डी. महाजन (d) जदुनाथ सरकार |
उत्तर-(c) व्याख्या- ईश्वरी प्रसाद ने सतनामी विद्रोह को औरंगजेब की धार्मिक नीतियों के विरोध में हिन्दू प्रतिक्रिया की संज्ञा दी है। 1667 ई. में मथुरा के नजदीक (नारनौल, में एक सतनामी नाम के धार्मिक संगठन ने विद्रोह किया था। सतनामी नामक धार्मिक पन्थ दादू की परम्परा में जगजीवन दास ने चलाया था। इसके अनुयायी निम्न जाति के लोग उच्च जाति से सुरक्षा के लिए अपने साथ अस्त्र लेकर चलते थे। यह विद्रोह मूलतः मेवात, मथुरा एवं नारनौल क्षेत्र में केन्द्रित था। इसमें मूलतः कृषक थे। 1672 ई. में एक सिपाही एवं सतनामी के बीच हुई झड़प ने विद्रोह का रूप धारण कर लिया।, |
279. मुगल भू-राजस्व प्रशासनिक शब्दावली में ‘जिहात’ क्या था ? (a) निर्धारित करों के अतिरिक्त एक देय (b) एक धार्मिक कर (c) एक पथ कर (d) उपरोक्त में से कोई नहीं |
उत्तर- (a)व्याख्या— मुगल भू-राजस्व प्रशासनिक शब्दावली में ‘जिहात निर्धारित करों के अतिरिक्त एक देय कर था। |
280. निम्नलिखित में से कौन एक ‘चितौड़ की सन्धि’ (1615 ई.) की शर्तों के विषय में सही नहीं है ? (a) जहाँगीर प्राचीन राजपूत वंशों को समाप्त करने के पक्ष में नहीं था (b) राणा को चित्तौड़ सहित मेवाड़ पुनः प्रदत्त कर दिया गया था (c) राणा, चित्तौड़ में पुनर्निर्माण एवं सुदृढीकरण नहीं कर सकेगा (d) राणा को व्यक्तिगत रूप से मुगल दरबार में उपस्थित रहना था |
उत्तर- (a) व्याख्या – सन्धि की शर्तें-राणा अमर सिंह एवं जहाँगीर के मध्य हुई सन्धि की शर्तें इस प्रकार हैं- 1. राणा ने मुगलों की अधीनता स्वीकार की। 2. अकबर के शासन काल में जीते गए मेवाड़ के क्षेत्रों एवं चित्तौड़ के किले राणा को वापस मिल गए। चित्तौड़ के किले को और मजबूत करने एवं उसकी मरम्मत पर पूर्ण प्रतिबन्ध लगा दिया गया। 3. राणा पर मुगलों से वैवाहिक सम्बन्ध स्थापित करने के लिए दबाव नहीं डाला गया। राणा को अपने स्थान पर मुगल सेना में अपने पुत्र ‘कर्ण‘ को भेजने की छूट मिली। युवराज कर्ण को मुगल दरबार में पूर्ण सम्मान के साथ बादशाह के दाहिनी ओर स्थान मिला साथ ही 5,000 ‘सवार‘ एवं 5,000 ‘जात‘का मनसब प्रदान किया गया। इस तरह से लम्बे अर्से से चलने वाला संघर्ष दोनों पक्षों की राजनीतिक सूझ-बूझ के कारण समाप्त हो गया जिसमें जहाँगीर एवं उसके पुत्र खुर्रम की महत्त्वपूर्ण भूमिका रही। सम्राट जहाँगीर ने सन्धि का पालन करते हुए मेवाड़ के प्रति पूर्ण उदार दृष्टिकोण के साथ उसके (राणा के) व्यक्तिगत मामलों में हस्तक्षेप नहीं किया। जहाँगीर के शासन काल की यह महत्त्वपूर्ण उपलब्धि थी। |
281. निम्नलिखित में से कौन एक मुगल मनसबदारी व्यवस्था के विषय में सही नहीं है ? (a) कि, इसके अन्तर्गत मनसबदारों के तैंतीस वर्ग थे (b) कि, उन्हें (मनसबदारों को) ‘मशरूत’ अथवा प्रावधिक पद भी प्रदान किया जा सकता था (c) कि, इसके द्वारा मुगल यातायात व्यवस्था सुदृढ़ व्यवस्थित हो गई थी (d) कि, मनसबदार आनुवंशिक अधिकारी होते थे। |
उत्तर- (d) व्याख्या-अरबी भाषा के शब्द ‘मनसब’ का शाब्दिक अर्थ है ‘पद’। मुगलकालीन सैन्य व्यवस्था पूर्णतः मनसबदारी प्रथा पर आधारित थी। अकबर द्वारा आरम्भ की गई इस व्यवस्था में उन व्यक्तियों को सम्राट द्वारा एक पद प्रदान किया जाता था, जो शाही सेना में होते थे, दिए जाने वाले पद को ‘मनसब’ एवं ग्रहण करने वाले को मनसबदार कहा जाता था। मनसब प्राप्त करने के उपरान्त उस व्यक्ति का शाही दरबार में प्रतिष्ठा स्थान व वेतन का ज्ञान होता था। सम्भवतः अकबर की मनसबदारी व्यवस्था मंगोल नेता चंगेज खाँ की ‘दशमलव प्रणाली’ पर आधारित थी। पद या श्रेणी के अर्थ वाले मनसब शब्द का प्रथम उल्लेख अकबर के शासन के ग्यारहवें वर्ष में मिलता है, परन्तु मनसब के जारी होने का उल्लेख 1577ई. से मिलता है। मनसबदार के पद के साथ 1594-95 ई.. से (सवा’ का पद भी जुड़ने लगा। इस तरह अकबर के शासन काल में मनसबदारी प्रथा कई चरणों से गुजर कर उत्कर्ष पर पहुँची। अकबर के शासन काल में प्रत्येक उच्च पदाधिकारी केवल काजी एवं सद्र को छोड़कर सेना में पदासीन होता था। युद्ध के समय आवश्यकता पड़ने पर उसे सैन्य संचालन भी करना पड़ता था। इन सब को मनसब प्राप्त होता था। परन्तु सैन्य विभाग से अलग अन्य विभागों में कार्यरत इन पदाधिकारियों को ‘मनसबदार’ के स्थान पर (रोजिनदार’ कहा जाता था। अकबर के समय में सबसे छोटा मनसब 10 एवं सबसे बड़ा मनसब 10,000 का होता था, परन्तु कालान्तर में यह बढ़कर 12,000 हो गया। शाही परिवार के शहजादों को 5000 से ऊपर का मनसब मिलता था। मनसब प्राप्त करने वाले मुख्यतः तीन वर्गों में विभक्त थे-10 से 500 तक मनसब प्राप्त करने वाले ‘मनसबदार’ कहलाते थे, 500 से 2500 तक मनसब प्राप्त करने वाले ‘उमरा’ कहलाते थे एवं 2500 से ऊपर मनसब प्राप्त करने वाले व्यक्ति ‘अमीर-ए-उम्दा ‘ या ‘अमीर-ए-आजम’ कहलाते थे। ‘जात’ अर्थात् व्यक्ति के वेतन व प्रतिष्ठा का ज्ञान होता था। ‘सवार’ पद से घुड़सवार दस्तों की संख्या का ज्ञान होता था। मनसबदारों को वेतन नकद व जागीर दोनों में ही देने की व्यवस्था थी। कार्यकाल के समय मनसबदारों के मरने पर उसकी सम्पत्ति को जब्त कर लिया जाता था। मनसबदारों की जागीरें एक प्रान्त से दूसरे प्रान्त में स्थानान्तरित कर दी जाती थीं। औरंगजेब के समय में सक्षम मनसबदारों के किसी महत्त्वपूर्ण पद पर जैसे फौजदार या किलेदार आदि पद पर नियुक्त या फिर किसी आधार पर महत्त्वपूर्ण अभियान पर जाते समय उसके सवार पद में अतिरिक्त विधि का एक और माध्यम निकाला गया जिसे ‘मशरूत’ कहा गया। मनसबदारों का पद वंशानुगत नहीं होता था। अयोग्य व अक्षम मनसबदार को सम्राट हटा देता था। |
282. पानीपत के तृतीय युद्ध में विजय के पश्चात् एवं भारत छोड़ने से पूर्व अहमदशाह अब्दाली ने भारत का सम्राट (बादशाह) किसे घोषित किया था ? (a) अहमदशाह (b) शाहजहाँ-III (c) शाह आलम-II (d) अकबर-II |
उत्तर-(c) व्याख्या – पानीपत के तृतीय युद्ध की शुरूआत 14 जनवरी, 1761 को हुई थी। इस युद्ध में मराठा सेना का प्रतिनिधित्व सदाशिवराव भाऊ ने किया, विश्वासराव तो नाममात्र का सेनापति था। इसकी ओर अहमदशाह अब्दाली था। इस युद्ध मुख्यत: दो कारण थे 1. नादिरशाह की तरह अहमदशाह अब्दाली भी भारत को लूटना चाहता था 2. मराठे हिन्दू पद पादशाही की भावना से ओत-प्रोत होकर दिल्ली को अपने अधिकार में लेना चाहते थे। इस युद्ध में मराठा शक्ति की पराजय हुई। इस युद्ध में महाराष्ट्र में सम्भवत: ही कोई ऐसा परिवार होगा जिसने कोई न कोई सगा सम्बन्धी नहीं खोया हो तथा कुछ परिवारों का तो विनाश ही हो गया। नजीब-उद्-दौला जिसने पानीपत के युद्ध के बाद अहमदशाह अब्दाली के प्रतिनिधि के रूप में दिल्ली पर शासन किया था। इसकी मृत्यु के बाद 1770 ई. में मराठों से निर्वासित मुगल सम्राट शाह आलम द्वितीय को उसके पूर्वजों की राजधानी दिल्ली में पुनः सत्तारूढ़ किया। |
283. इन दो वक्तव्यों को देखिए- कथन (A)— अकबर ने फतेहपुर सीकरी में बुलन्द दरवाज़ा निर्मित किया था। कारण (R)— अकबर अपनी विजयी की स्मृति को संजोने का इच्छुक था। इन दोनों वक्तव्यों के सन्दर्भ में, निम्नलिखित में से कौन एक सही है ? (a) A तथा R दोनों सही हैं तथा A की सही व्याख्या R है (b) A तथा R दोनों सही हैं, किन्तु A की सही व्याख्या R नहीं है (c) A, सही है, किन्तु R गलत है। (d) A गलत है, किन्तु R सही है |
उत्तर- (a) व्याख्या-अकबर ने फतेहपुर सीकरी में बुलन्द दरवाजा बनाया था। इस दरवाजे का निर्माण सम्राट अकबर ने गुजरात विजय के उपलक्ष्य में मस्जिद के दक्षिणी द्वार पर करवाया था। यह दरवाजा (134 फुट ऊँचा है। इसके निर्माण में लाल एवं बलुआ पत्थर का प्रयोग किया गया है। जमीन की सतह से इस दरवाजे की ऊँचाई 176 फुट है। दरवाजे की महत्त्वपूर्ण .विशेषता इसका मेहराबी मार्ग है। दरवाजे पर लिखे लेख द्वारा अकबर मानव समाज को विश्वास, भाव एवं भक्ति का सन्देश देता है। इसे अकबर की दक्षिणी विजय की स्मृति में बनाया गया भी माना जाता है। इस प्रकार कथन (A) एवं कारण (R) दोनों सही हैं तथा कथन (A) कारण (R) की सही व्याख्या है। |
284. शिवाजी के शासन काल में ‘पेशवा’ कौन था ? (a) मोरोपन्त पिंगले (b) दत्ताजी त्र्यम्बक (c) नीराजी रावजी (d) रामचन्द्र नीलकण्ठ |
उत्तर- (a)– शिवाजी के शासनकाल में मोरोपन्त पिंगले नामक पेशवा था। |
285. निम्नलिखित अभियानों में से किस एक में अहमदशाह अब्दाली ने दिल्ली के साथ-साथ, मथुरा-वृन्दावन को विनष्ट किया था ? (a) प्रथम, 1748 ई. (b) द्वितीय, 1749 ई. (c) तृतीय, 1751 ई. (d) चतुर्थ, 1756 ई. |
उत्तर— (d) व्याख्या—अहमदशाह अब्दाली ने अपने (चतुर्थ अभियान में, जो 1756 ई. में हुआ था, दिल्ली के साथ-साथ, मथुरा एवं वृन्दावन को विनष्ट किया था। |
287. ‘पुरन्दर की सन्धि’ (1665 ई.) में मुगलों को प्रदान किए गए दुर्गों में से कौन सा दुर्ग शिवाजी के द्वारा पुनर्विजित नहीं किया जा सका था ? (a) पुरन्दर (b) माहुली (c) लोहागढ़ (d) शिवनेरी |
उत्तर-(b) व्याख्या-22 जून, 1665 ई. को शिवाजी एवं महाराणा जयसिंह के बीच पुरन्दर की सन्धि हुई थी। इस सन्धि की शर्तों के अनुसार- (i) शिवाजी को मुगलों को अपने 23 किले जिनकी आमदनी 4 लाख हूण प्रतिवर्ष थी, देने थे। (ii) सामान्य आय वाले (लगभग 1 लाख रु. वार्षिक) 12 किले शिवाजी को अपने परस रखने थे। (iii) शिवाजी ने मुगल सम्राट औरंगजेब की सेवा में अपने पुत्र शम्भाजी को भेजने की बात मान ली एवं मुगल दरबार में शम्भाजी को 5000 का मनसब एवं उचित जागीर देना स्वीकार किया गया। (iv) मुगल सेना के द्वारा बीजापुर पर सैन्य अभियान के समय शिवाजी को मुगल सेना की सहायता करनी थी। इस सन्धि में मुगलों को प्रदान किए गए 23 किलों में से माहुली दुर्ग शिवाजी के द्वारा पुनर्विजित नहीं किया जा सका था। |
288. किस सन्धि द्वारा इंग्लिश ईस्ट इण्डिया कम्पनी को बंगाल, बिहार एवं उड़ीसा के दीवानी अधिकार प्राप्त हुए थे ? (a) मुर्शिदाबाद की सन्धि (b) हुगली की सन्धि (c) इलाहाबाद की सन्धि (d) हरिहरपुर की सन्धि |
उत्तर-(c) व्याख्या – इलाहाबाद की सन्धि द्वारा ईस्ट इण्डिया कम्पनी को बंगाल, बिहार एवं उड़ीसा के दीवानी अधिकार प्राप्त हुए थे। इलाहाबाद की पहली सन्धि (16 अगस्त, 1765) बक्सर के युद्ध के पश्चात् क्लाइव, दूसरी बार बंगाल का गवर्नर बनकर आया। 16 अगस्त, 1765 को शुजाउद्दौला के साथ इलाहाबाद की पहली सन्धि की जिसके अनुसार शुजाउद्दौला से ‘इलाहाबाद’ और ‘कड़ा’ जिला लेकर शाह आलम द्वितीय को दे दिया एवं 50 लाख रुपया युद्ध हर्जाने के रूप में लिया था। बनारस की जागीर बलवन्त सिंह को पुनः दी गई। इलाहाबाद की दूसरी सन्धि (16 अगस्त, 1765 ) -क्लाइव ने शाह आलम द्वितीय को इलाहाबाद और कड़ा जिला प्रदान किये जिसके बदले में शाह आलम द्वितीय ने कम्पनी को बंगाल, बिहार तथा उड़ीसा की दीवानी स्थायी रूप से दे दी। दीवानी अधिकार के बदले में कम्पनी ने शाह आलम को 26 लाख रुपये देने का वादा किया था। |
289. निम्नलिखित में से किस अधिनियम के द्वारा ‘नियन्त्रण मण्डल’ की व्यवस्था की गई थी ? (a) रेग्यूलेटिंग अधिनियम, 1773 (b) पिट का भारत अधिनियम, 1784 (c) चार्टर एक्ट, 1813 (d) चार्टर एक्ट, 1833 |
उत्तर—(b) व्याख्या- -पिट्स इण्डिया एक्ट, 1784 ई. के तहत नियन्त्रण मण्डल की व्यवस्था की गई थी। इस अधिनियम के अनुसार सभी सैनिक-असैनिक तथा राजस्व सम्बन्धी मामलों को एक ‘निमन्त्रण बोर्ड ‘बरेलवी’ को सौंप दिया गया जिसमें एक चांसलर ऑफ एक्सचेकर, एक राज्य सचिव तथा उनके द्वारा नियुक्त चार प्रीवी काउन्सिल के सदस्य होते थे। नियन्त्रण बोर्ड के माध्यम से द्वैध प्रणाली की स्थापना की गई। इसको कम्पनी के सभी कागजातों की जाँच पड़ताल का अधिकार दिया गया और केवल व्यापारिक आदेश को छोड़कर शेष सभी आदेशों पर नियन्त्रण बोर्ड की स्वीकृति आवश्यक थी। आवश्यकता पड़ने पर नियन्त्रण बोर्ड अपना आदेश डायरेक्टरों की गुप्त समिति को भेज सकता था। इस बोर्ड का अध्यक्ष प्रारम्भिक काल में एक राज्य सचिव होता था और उसे कोई विशेष वेतन नहीं दिया जाता था। |
290. झाँसी के ब्रिटिश साम्राज्य के विलय के समय, निम्नलिखित में से कौन झाँसी का ब्रिटिश एजेन्ट था ? (a) मेजर मॉलकम (b) मेजर एलिस (c) जौन लॉरेन्स (d) मार्टिन मॉण्टगोमरी |
उत्तर-(b) व्याख्या-झाँसी के ब्रिटिश साम्राज्य के विलय के समय झाँसी का ब्रिटिश एजेन्ट मेजर एलिस था। |
291. ‘तृतीय आंग्ल-मैसूर युद्ध’ के समय, भारत का गवर्नर-जनरल कौन था ? (a) वॉरेन हेस्टिंग्स (b) लॉर्ड कॉर्नवालिस (c) लॉर्ड वेलेजली (d) सर जॉन शोर |
उत्तर-(b) व्याख्या- ‘तृतीय आंग्ल-मैसूर युद्ध’ के समय गवर्नर-जनरल लॉर्ड कॉर्नवालिस था। तृतीय आंग्ल-मैसूर युद्ध 1790-92 ई. के बीच हुआ था। लॉर्ड कॉर्नवालिस का कार्यकाल 1786 ई. से 1793 ई. तक था। |
292. ‘वाण्डीवाश का युद्ध (1760)’ लड़ा गया था— (a) ब्रिटिश एवं फ्रांसीसी कम्पनियों के मध्य (b) ब्रिटिश एवं डच कम्पनियों के मध्य (c) डच एवं पुर्तगाली कम्पनियों के मध्य (d) फ्रांसीसी एवं डच कम्पनियों के मध्य |
उत्तर- (a) व्याख्या- ‘वाण्डीवाश का युद्ध‘ 1760 ई. में ब्रिटिश एवं फ्रांसीसी कम्पनियों के मध्य लड़ा गया था। यह युद्ध फ्रेन्च ईस्ट इण्डिया का अन्तिम निर्णायक युद्ध था जिसमें फ्रेन्च हार गए थे तथा भारत के अपने लगभग सभी अधिकार क्षेत्रों को खो दिया। |
293. 1831 ई. में बालाकोट का युद्ध निम्न सेनाओं के मध्य लड़ा गया था— (a) ईस्ट इण्डिया कम्पनी और अफगान (b) ईस्ट इण्डिया कम्पनी और मराठा (c) मराठा एवं अफगान (d) राजा रणजीत सिंह और सैयद अहमद बरेलवी |
उत्तर- (d) व्याख्या – 1831 ई. के आयोजित बालाकोट का युद्ध राजा रणजीत सिंह और सैयद अहमद बरेलवी के बीच हुआ था। |
294. निम्नलिखित यूरोपीय व्यापार कम्पनियों में से किस एक ने भारत में ‘नीले जल की नीति’ को अपनाया था ? (a) फ्रांसीसी कम्पनी (b) पुर्तगाली कम्पनी (c) डच कम्पनी (d) ब्रिटिश ईस्ट इण्डिया कम्पनी |
उत्तर – (b) व्याख्या-यूरोपीय व्यापार कम्पनियों में पुर्तगाल कम्पनी ने भारत में ‘नीले जल की नीति’ को अपनाया। इस नीति को फ्रांसिस्को डी अल्मीडा (1505-1509) ने लागू किया था। अल्मीडा का मूल उद्देश्य शान्तिपूर्ण व्यापार करना था, उसकी यह नीति ही ब्लू वाटर पॉलिसी कहलाई। पुर्तगालियों ने हिन्द महासागर और लाल सागर से होने वाले अरबों के व्यापार के एकाधिकार को समाप्त कर दिया। परिणामस्वरूप यूनान और तुर्की समुद्री मार्ग तथा मिस्र से सिकन्दरिया होकर यूरोप जाने वाले भारतीय माल पर प्राप्त होने वाले शुल्क से वे वंचित हो गए। |
295. ‘पॉवर्टी एण्ड अनब्रिटिश रूल इन इण्डिया’ नामक पुस्तक निम्न से किसके द्वारा लिखी गई थी ? (a) सुरेन्द्रनाथ बनर्जी (b) ए. ओ. हाम (c) दादाभाई नौरोजी (d) आर.पी. दत्त |
उत्तर-(c)व्याख्या- ‘पॉवर्टी एण्ड अनब्रिटिश रूल इन इण्डिया’ नामक पुस्तक के लेखक दादाभाई नौरोजी है। ये ‘द ग्रांड ओल्डमैन ऑफ इण्डिया’ के नाम से विख्यात हैं। इन्होंने इस पुस्तक में ‘अपक्षय अथवा धन के अपवहन’ का सिद्धान्त प्रतिपादित कर अंग्रेजों द्वारा किए जा रहे भारत के आर्थिक शोषण का खुलासा किया। इन्होंने 1893 ई. में लाहौर तथा 1906 ई. में कलकत्ता में आयोजित भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की अध्यक्षता की थी। ये ब्रिटेन में लिबरल पार्टी’ के टिकट पर हाउस ऑफ कॉमन्स के प्रथम भारतीय सदस्य बने थे। |
296. ‘धन के निष्कासन’ सिद्धान्त को भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस ने कब स्वीकार किया था ? (a) 1896 ई. में (b) 1902 ई. में (c) 1906 ई. में (d) 1935 ई. में |
उत्तर- (a) व्याख्या- धन के निष्कासन सिद्धान्त को भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस ने 1896 ई. में स्वीकार किया था। आर्थिक निष्कासन भारत में केवल ब्रिटिश शासन में ही देखा गया। उसके पहले की देशी विदेशी, अच्छी-बुरी सभी सरकारों ने जनता से वसूल किए गए राजस्व को देश के अन्दर ही खर्च किया। अंग्रेज हमेशा विदेशी बने रहे। फलस्वरूप अंग्रेजों ने भारतीय जनता से वसूल किए गए माल का एक बड़ा भाग भारत में नहीं बल्कि अपने देश ब्रिटन में खर्च किया। दादाभाई नौरोजी ने धन की निकासी को अनिष्टों के अनिष्ट की संज्ञा दी है। |
297. निम्नलिखित कथनों में से कौन एक कथन स्थायी (भूमि) बन्दोबस्त की विशेषताओं में से नहीं है ? (a) इस व्यवस्था को बंगाल, बिहार एवं उड़ीसा में लागू किया गया था (b) इसमें तीन पक्ष थे, यथा सरकार, जमींदार एवं रैयत (c) इस व्यवस्था के द्वारा भू-राजस्व स्थायी तौर पर सुनिश्चित कर दिया गया (d) भू-राजस्व के रूप में एकत्रित की जाने वाली कुल राशि चार करोड़ रुपये निर्धारित थी |
उत्तर- (d) व्याख्या- लॉर्ड कॉर्नवालिस जो 1786 ई. में बंगाल का गवर्नर जनरल बना एवं इसने जेम्स ग्रान्ट एवं सर जॉन शोर से नवीन लगान व्यवस्था पर विचार विमर्श किया। 1790 ई. में कॉर्नवालिस ने दस वर्षीय व्यवस्था को लागू किया। 1793 ई. में इस व्यवस्था को बंगाल, बिहार एवं उड़ीसा में स्थायी कर दिया गया और कालान्तर में इसे उत्तर प्रदेश, बनारस खण्ड एवं उत्तरी कर्नाटक में भी लागू कर दिया गया। स्थायी भूमिकर व्यवस्था भारत की लगभग 19% भूमि पर लागू की गई। इस व्यवस्था के अन्तर्गत जमींदारों से मालगुजारी के रूप में एक निश्चित माल हमेशा के लिए निश्चित कर दी जाती थी। जमींदार किसानों से वसूले गए लगान का 10/11 भाग सरकारी कोष में जमा करता था तथा शेष 1/11 भाग अपने खर्च, परिश्रम व दायित्व के लिए अपने पास रखता था। जमींदारों द्वारा निश्चित समय में सरकारी खजाने में लगान न जमा करने पर भूमि को नीलाम कर दिया जाता था। इस प्रकार इस व्यवस्था में तीन पक्ष-सरकार, जमींदार एवं रैयत थे। |
298. 1938 ई. में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस द्वारा स्थापित राष्ट्रीय योजना समिति (नेशनल प्लानिंग कमेटी) का अध्यक्ष कौन था ? (a) जवाहरलाल नेहरू (b) सरदार वल्लभभाई पटेल (c) मौलाना अबुल कलाम आज़ाद (d) जे. बी. कृपलानी |
उत्तर- (a) व्याख्या-1938 ई. में आयोजित भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस द्वारा स्थापित राष्ट्रीय योजना समिति के अध्यक्ष जवाहरलाल नेहरू थे |
299. ‘गुलामगिरी’ नामक पुस्तक का लेखक कौन है? (a) ज्योतिबा फुले (b) भीमराव अम्बेडकर (c) ई.वी. रामास्वामी नायकर (d) इनमें से कोई नहीं |
उत्तर- (a) व्याख्या-फुले ने ‘गुलामगिरी’ नामक पुस्तक लिखी है। 1873 ई. में ज्योतिबा फुले ने ‘सत्यशोधक समाज’ की स्थापना की थी। उन्होंने 1872 ई. में गुलामगिरी नामक ग्रन्थ की रचना की थी। |
300. भारत की शिक्षा नीति में ‘फिल्ट्रेशन सिद्धान्त’ के प्रतिपादक थे- (a) सी. वुड (b) मैकाले (c) जे.एस. मिल (d) कॉर्नवालिस |
उत्तर-(b) व्याख्या- भारत की शिक्षा नीति में ‘फिल्ट्रेशन सिद्धान्त‘ के प्रतिपादक लॉर्ड मैकाले थे। अधोमुखी निस्पन्दन सिद्धान्त जिसका अर्थ था शिक्षा समाज के उच्च वर्ग को दी जाए। इस वर्ग में छन-छन कर ही शिक्षा का असर जनसामान्य तक पहुँचे। इस सिद्धान्त को सर्वप्रथम सरकारी नीति के रूप में ‘आकलैण्ड‘ ने लागू किया। ‘वुड डिस्पैच‘ के पहले तक इस सिद्धान्त के तहत भारतीयों को शिक्षित किया गया। |
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History Objective-इतिहास के 25 प्रश्न के श्रृंखला की शुरुआत की गई है। यह यूपीएससी/यूपीपीसीएस/बीपीएससी/NTA NET HISTORY/एसएससी/रेलवे इत्यादि के लिए बहुत ही महत्वपूर्ण प्रश्नों का संग्रह किया गया है। यह श्रंखला का लक्ष्य 1000 प्रश्नों का है। अतः सब्सक्राइव कर ले एवम् इसका लाभ उठाए।इससे आप अपने तैयारी की जांच कर सकते. यह सीरीज आपको कैसा लगा। आप हम कमेंट करें और सब्सक्राइब करें। धन्यवाद