History MCQ–इतिहास के 25 प्रश्न के श्रृंखला की शुरुआत की गई है। यह UPSC/UPPSC/BPSC/SSC CGL/NTA NET HISTORY/RAILWAY इत्यादि के लिए बहुत ही महत्वपूर्ण प्रश्नों का संग्रह किया गया है। यह श्रंखला का लक्ष्य 1000 प्रश्नों का है। अतः सब्सक्राइव कर ले एवम् इसका लाभ उठाए।इससे आप अपने तैयारी की जांच कर सकते हैं। साथ ही यह सभी परीक्षाओं के लिए तैयार किया गया है।इसके pdf को आप हमारे वेबसाइट पर डाउनलोड कर सकते हैं।
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History MCQ/GK Free Practice Set -32 (775-800)
776. निम्नलिखित वक्तव्यों पर विचार कीजिए तथा नीचे दिए गए कूट से सही उत्तर का चयन कीजिए- कथन (A) — चीनी यात्री फाह्यान ने चन्द्रगुप्त-II के राज्यकाल में भारत की यात्रा की थी। कारण (R) – फाह्यान ने राजधानी पाटलिपुत्र से चन्द्रगुप्त द्वारा अपने साम्राज्य पर शासन करने का वर्णन किया है। कूट : (a) ‘A’ और ‘R’ दोनों सही हैं और ‘A’ की सही व्याख्या ‘R’ है (b) ‘A’ और ‘R’ दोनों सही हैं, किन्तु ‘A’ की सही व्याख्या ‘R’ नहीं है (c) ‘A’ सही है, किन्तु ‘R’ गलत है (d) ‘A’ गलत है, किन्तु ‘R’ सही है |
उत्तर-(c) व्याख्या-चीनी यात्री फाह्यान चन्द्रगुप्त द्वितीय के शासनकाल में भारत आया था। चीनी भाषा में फा’ का अर्थ होता है धर्म और ‘हियान का अर्थ है आचार्य अतएव फाह्यान नाम से तात्पर्य है ‘धर्माचार्य’। फाह्यान के बाल्यकाल का नाम कुडा था। उसके द्वारा छोड़ा गया भ्रमण-वृत्तान्त चन्द्रगुप्तकालीन भारत की सांस्कृतिक दशा का सुन्दर निरूपण करता है। यद्यपि उसने समकालीन शासक का नामोल्लेख नहीं किया है। स्त्रोत- प्राचीन भारत का इतिहास तथा संस्कृति—के.सी. श्रीवास्तव |
777. सूची-I को सूची-II से सुमेलित कीजिए तथा सूचियों के नीचे कूट से सही उत्तर का चयन कीजिए सूची-1 (लेखक) सूची-II(रचना) A. शूद्रक 1. मृच्छकटिक B. विशाखदत्त 2. मुद्राराक्षस C. कालिदास 3. विक्रमोर्वशीय D. भवभूति 4. उत्तर रामचरित |
उत्तर- (a) व्याख्या सही सुमेलन इस प्रकार है- सूची-I (लेखक) सूची-II (रचना) A. शूद्रक 1. मृच्छकटिक B. विशाखदत्त 2. मुद्राराक्षस C. कालिदास 3. विक्रमोर्वशीय D. भवभूति 4. उत्तर रामचरित — प्रचीन भारत का इतिहास तथा संस्कृति— के.सी. श्रीवास्तव |
778. गान्धार शैली की बुद्ध मूर्तियों की मुखाकृति किस ग्रीक देवता पर आधारित थी ? (a) हेलिओस (b) अपोलो (c) हेराकलीज (d) जियस |
उत्तर-(b) व्याख्या – गान्धार शैली की बुद्ध मूर्तियों की मुखाकृति ग्रीक देवता अपोलो पर आधारित थी। स्त्रोत- प्राचीन भारत का इतिहास-झा एवं श्रीमाली |
779. निम्नलिखित युग्मों में कौन सही सुमेलित नहीं है ? राजा रानी (a) चन्द्रगुप्त-1 कुमारदेवी (b) समुद्रगुप्त दत्तदेवी (c) चन्द्रगुप्त-II ध्रुवदेवी (d) कुमारगुप्त कुबेर नागा |
उत्तर- (d) व्याख्या-सही सुमेलन इस प्रकार है- राजा रानी (a) चन्द्रगुप्त-1 कुमारदेवी (b) समुद्रगुप्त दत्तदेवी (c) चन्द्रगुप्त-II ध्रुवदेवी (d) कुमारगुप्त अनंतदेवी इस प्रकार कुबेर नागा रानी की शादी चन्द्रगुप्त-I से हुई थी। स्त्रोत प्राचीन भारत का इतिहास तथा संस्कृति- के.सी श्रीवास्तव |
780. महमूद गजनी के सोमनाथ अभियान के समय चोल राज्य का शासक कौन था ? (a) उत्तम चोल (b) राजराज-I (c) राजेन्द्र-I (d) कुलोत्तुंग |
उत्तर-(c) व्याख्या- महमूद गजनी के सोमनाथ अभियान के समय चोल राज्य का शासक राजेन्द्र प्रथम था। महमूद गजनी ने 1025-26 ई. में काठियावाड़ (सौराष्ट्र) में सोमनाथ के मन्दिर पर आक्रमण किया था। चोल शासक राजेन्द्र प्रथम का शासनकाल 1012 ई. से 1044 ई. तक रहा है। स्त्रोत- प्राचीन भारत का इतिहास तथा संस्कृति—के.सी. श्रीवास्तव |
781. किसके समय से गंगैकोण्डचोलपुरम चोलों का प्रशासकीय केन्द्र बन गया ? (a) परान्तक (b) राजेन्द्र-I (c) राजराज-I (d) विक्रम चोल |
उत्तर-(b) व्याख्या – चोल शासक राजेन्द्र प्रथम के समय से गंगैकोण्डचोलपुरम चोलों का प्रशासकीय केन्द्र बन गया। राजाराम प्रथम की मृत्यु के पश्चात् उसका योग्यतम पुत्र राजेन्द्र प्रथम सम्राट बना। उसने अपने पिता की साम्राज्यवादी नीति को आगे बढ़ाया। उत्तर में उसने बंगाल के पाल शासक महीपाल को पराजित किया। इस गंगा घाटी के अभियान की सफलता पर राजेन्द्र ने ‘गंगैकोण्ड चोल’ की उपाधि धारण की तथा इसके उपलक्ष्य में उसने ‘गंगैकोण्डचोलपुरम’ नामक नई राजधानी की स्थापना की। नवीन राजधानी के निकट सिंचाई के लिए ‘चोल गंगम्’ नामक विशाल तालाब का निर्माण कराया। स्त्रोत- प्राचीन भारत का इतिहास तथा संस्कृति—के.सी. श्रीवास्तव |
782. किसकी सभा का नाम भुवन-विजय था ? (a) अवन्ति वर्मा (b) भोज (c) कुलोत्तुंग-I (d) कृष्णदेव राय |
उत्तर- (d) व्याख्या – कृष्णदेव राय की सभा का नाम (भुवन-विजय था। स्त्रोत-मध्यकालीन भारत—एल.पी. शर्मा |
783. चोल शासक सामान्यतः उपासक थे- (a) शिव के (b) विष्णु के (c) शक्ति के (d) कार्तिकेय के |
उत्तर- (a) व्याख्या – चोल शासक सामान्यतः शिव के उपासक थे। चोलों के समय में वैष्णव एवं शैव मतों का व्यापक प्रचार हुआ। दक्षिण में इनके मतों के प्रचार में शैव नायनारों एवं वैष्णव आलवारों ने महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई। अधिकतर चोल कट्टर शैव थे। उन्होंने, शैव धर्म के प्रचार-प्रसार में गहरी रुचि ली। चोल नरेश (आदित्य प्रथम ने शिवपूजा के लिए कावेरी के किनारे शिवमन्दिर का निर्माण और इसके पत्र परान्तक ने इन्हीं की आराधना में (दसभा का निर्माण करवाया। चोल सम्राट राजराज प्रथम के काल में तो शैव धर्म अपने चरमोत्कर्ष पर पहुँच गया। राजराज ने तन्जौर में ‘राज राजेश्वर’ अथवा ‘बृहदीश्वर’ मन्दिर का निर्माण करवाया, साथ ही ‘शिवपाद शेखर’ की उपाधि भी धारण की। राजराज के समय शैव सन्त ‘नम्बि आण्डारनम्बि’ ने शैव मन्त्रों को धर्मग्रन्थ में संग्रहित किया। स्त्रोत- प्राचीन भारत का इतिहास तथा संस्कृति—के.सी. श्रीवास्तव |
784. निम्नलिखित में से किसने सर्वप्रथम पृष्ठ भाग पर लक्ष्मी की प्रतिमा युक्त स्वर्णमुद्रा का प्रचलन किया ? (a) गोविन्दचन्द्र गहड़वाल (b) कीर्तिवर्मा चन्देल ( c) उदयादित्य परमार (d) गांगेयदेव कलचुरि |
उत्तर—(d) व्याख्या-गांगेयदेव कलचुरि ने सर्वप्रथम पृष्ठ भाग पर लक्ष्मी की प्रतिभा युक्त स्वर्णमुद्रा का प्रचलन किया। गांगेयदेव विक्रमादित्य कलचुरियों का प्रथम स्वतन्त्र शासक था। इसने शैव मत को ग्रहण किया। इसे तीर भुक्ति का स्वामी कहा जाता था। सम्पूर्ण कलचुरि वंश में (सिक्के प्रवर्तित करने वाला (गांगेयदेव पहला और अन्तिम शासक था जिसके ‘लक्ष्मी शैली के हैं। राजपूत राजाओं में सर्वप्रथम उसी ने स्वर्ण सिक्के जारी किए थे। गांगेयदेव ने (प्रयाग) में (वटवृक्ष के नीचे निवास करते हुए अपनी एक सौ रानियों के साथ प्राणोत्सर्ग कर मुक्ति प्राप्त की थी। |
785. निम्नलिखित में सबसे छोटा माप कौन है ? (a) आढक (b) कुम्भ (c) खारी (d) द्रोण |
उत्तर– (a) व्याख्या- ‘आढक’ सबसे छोटा माप है। स्त्रोत- प्राचीन भारत का इतिहास-झा एवं श्रीमाली |
786. अवन्तिसुन्दरी के साथ राजशेखर का विवाह किस प्रकार का उदाहरण है ? (a) सगोत्र विवाह (b) सवर्ण विवाह (c) अनुलोम विवाह (d) प्रतिलोम विवाह |
उत्तर-(c) व्याख्या – अवन्तिसुन्दरी के साथ राजशेखर का विवाह अनुलोम विवाह का उदाहरण है। अनुलोम में उच्च वर्ण का व्यक्ति अपने ठीक नीचे के वर्ण की कन्या के साथ विवाह करता था। वैदिक समाज में इस तरह के विवाह प्रायः हुआ करते थे क्योंकि वर्ण व्यवस्था कठोर नहीं थी। अनेक ब्राह्मण ऋषियों के विवाह क्षत्रिय कन्याओं के साथ हुए थे। च्यवन ने सुकन्या, श्यावस्य ने रथवीति, अगस्त्य ने लोपामुद्रा आदि क्षत्रिय कन्याओं से विवाह किए थे। ब्राह्मणों को सभी वर्णों की कन्याओं के साथ विवाह करने का अधिकार मिला था। याज्ञवल्क्य के अनुसार अनुलोम से ब्राह्मण तीन, क्षत्रिय दो तथा वैश्य मात्र एक वर्ण की कन्याओं के साथ विवाह कर सकता था। ऐतिहासिक काल में भी इस प्रकार के विवाहों के दृष्टान्त मिलते हैं। शुंग शासक अग्निमित्र की पत्नी मालविका क्षत्रिय कन्या थी। राजशेखर की पत्नी अवन्तिसुन्दरी क्षत्रिय कन्या थी। राजतरंगिणी तथा कथा सरित्सागर जैसे ग्रन्थों में इस प्रकार के कई विवाहों के उदाहरण मिलते हैं। |
787. हूण राजकुमारी आवल्लदेवी किसकी रानी थी ? (a) गांगेयदेव (b) कर्ण (c) धर्मपाल (d) कुमारपाल |
उत्तर-(b) व्याख्या: कर्ण देव (लक्ष्मी कर्ण) ने विवाह किया था। गणियदेव के बाद उसका पुत्र कर्ण देव हुआ उसके साथ मिलकर मालवा के परमार वंश के शासक भोज को परास्त किया। विजय के उपरान्त उसने ‘त्रिकलिंगाधिपति’ की उपाधि धारण की। अपने पूर्वजो की भांति शैव मतानुयायी था। उसने बनारस में कर्ण नामक (शैव मन्दिर का निर्माण करवाया था तथा सारनाथ के बौद्ध भिक्षुओं को भी सुविधाएँ प्रदान की थीं। वह प्रयाग तथा काशी में दान वितरित करता था। कर्ण ने त्रिपुरी के निकट कर्णावती (आधुनिक कर्णवेल) नामक नगर की स्थापना कराई थी। स्रोत- प्राचीन भारत का इतिहास तथा संस्कृति के.सी. श्रीवास्तव |
788. चाहमान राजधानी किसके द्वारा साम्भर से अजमेर परिवर्तित की गई ? (a) अजयराज (b) अर्णोराज (c) विग्रहराज (d) पृथ्वीराज-III |
उत्तर- (a) व्याख्या – राज प्रथम के पुत्र अजयराज (बारहवीं सदी) ने अजयमेरु (अजमेर) नगर की स्थापना की तथा साम्भर से हटाकर राजधानी अजमेर ले गया। प्रतिहारों के सामन्त वासुदेव ने सातवीं शताब्दी में (साम्भर में अपनी पहली राजधानी स्थापित की। राजधानी के नाम पर ये (शाकम्भरी) के चौहान कहलाए। जियानक भट्ट (जगनिक) कृत पृथ्वीराज विजय में तुर्कों के विरुद्ध अजयराज की सफलताओं का वर्णन है। उसके कुछ सिक्कों पर उसकी रानी सोमल्लदेवी का नामोल्लेख है। स्त्रोत- प्राचीन भारत का इतिहास तथा संस्कृति—के.सी. श्रीवास्तव |
789. गोविन्दचन्द्र गहड़वाल की रानी कुमारदेवी ने धर्मचक्र-जिन-विहार कहाँ बनवाया था ? (a) बोधगया (b) कुशीनगर (c) कन्नौज (d) सारनाथ |
उत्तर- (d) व्याख्या- गोविन्दचन्द्र गहड़वाल की रानी कुमारदेवी ने धर्मचक्र- जिन-विहार सारनाथ में बनवाया था। स्त्रोत- प्राचीन भारत का इतिहास तथा संस्कृति—के.सी. श्रीवास्तव |
790. निम्नलिखित में से कौन अपने को ब्रह्म-क्षत्र कहते थे ? (a) पाल (b) प्रतिहार (c) सेन (d) राष्ट्रकूट |
उत्तर-(c) व्याख्या-सेन राजवंश अपने को ‘ब्रह्म-क्षत्र’ कहते थे। पाल राजवंश के तनोपरान्त बंगाल का शासन- सूत्र सेन राजवंश के हाथों में आ गया। इस वंश की स्थापना सामन्त सेन ने की थी। स्त्रोत- प्राचीन भारत का इतिहास तथा संस्कृति के.सी. श्रीवास्तव |
791. निम्न में से किसने ऐसे सिक्के प्रचलित किए जिनके एक और आसीन लक्ष्मी अंकित है और दूसरी ओर देवनागरी लिपि में शासक का नाम ? (a) मोहम्मद गोरी (b) महमूद गजनी (c) जैनुल आबिदीन (d) अकबर |
उत्तर- (a) व्याख्या- मोहम्मद गोरी के सिक्कों पर एक तरफ शिव के बैल की आकृति तथा देवनागरी लिपि में पृथ्वीराज लिखा है, तो दूसरी घोड़े के साथ मोहम्मद बिन साय। इसके कुछ सिक्कों पर लक्ष्मी की आकृति (देहलीवाल) है स्रोत-मध्यकालीन भारत-एल.पी. शर्मा |
792. बलबन द्वारा अपने साम्राज्य का विस्तार न कर पाने का कारण था- (a) अमीरों का असहयोग (b) राजपूतों का प्रतिरोध (c) मंगोलों का भय (d) उसके पुत्र का विद्रोह |
उत्तर-(c) व्याख्या–बलबन द्वारा अपने साम्राज्य का विस्तार न कर पाने का कारण मंगोलों का भय था। गुलाम सुल्तानों के लिए मंगोल आक्रमण एक बड़ी समस्या थी। इस कारण बलबन ने उत्तर-पश्चिम सीमा की रक्षा के लिए वहाँ सर्वदा एक बढ़ी सेना और एक योग्य सेनापति रखने की व्यवस्था की। निस्सन्देह, बलबन मंगोल-आक्रमणों के भय को सर्वदा के लिए समाप्त नहीं कर सका परन्तु इसमें भी सन्देह नहीं है। कि उसने मंगोलों की सफलता के मार्ग को बन्द कर दिया। उसने दिल्ली सल्तनत को सशक्त बनाया और उत्तर-पश्चिमी सीमाओं की सुरक्षा के सम्बन्ध में जो नीति अपनायी वह आगे आने वाले खिलजी शासकों के लिए मार्गदर्शक सिद्ध हुई। स्त्रोत-मध्यकालीन भारत-एल.पी. शर्मा |
793. निम्न में से किन दिल्ली सुल्तानों ने भू-राजस्व के निर्धारण के लिए भूमि की नाप करवाई ? 1. अलाउद्दीन खिलजी 2. ग्यासुद्दीन तुगलक 3. मोहम्मद तुगलक 4. सिकन्दर लोदी कूट : (a) 1 और 3 (b) 3 और 4 (c) 1.3 और 4 (d) 1, 2 और 3 |
उत्तर-(c) व्याख्या- अलाउद्दीन खिलजी, मोहम्मद तुगलक एवं सिकन्दर लोदी ने भू-राजस्व के निर्धारण के लिए भूमि की नाप करवाई थी। इस तीनों शासकों ने भूमि की नाप करवाकर, भूमि की पैमाइश के आधा पर लगान को निर्धारित किया था। स्त्रोत- मध्यकालीन भारत, भाग एक—एच.सी. वर्मा |
794. निम्नलिखित वक्तव्यों पर विचार कीजिए तथा नीचे दिए गए कूट सही उत्तर का चयन कीजिए- कथन (A) अलाउद्दीन खिलजी ने दक्षिणी राज्यों को जीता, कि उनका अपने साम्राज्य में विलय नहीं किया। कारण (R) — वह अपने साम्राज्य का विस्तार चाहता था, किन्तु अपने से दायित्वों में वृद्धि नहीं। कूट : (a) ‘A’ और ‘R’ दोनों सही हैं तथा ‘A’ की सही व्याख्या ‘R’ है (b) ‘A’ और ‘R’ दोनों सही हैं, किन्तु ‘A’ की सही व्याख्या ‘R’ नहीं है (c) ‘A’ सही है, किन्तु ‘R’ गलत है (d) ‘A’ गलत है, किन्तु ‘R’ सही है |
उत्तर- (a)व्याख्या- अलाउद्दीन खिलजी ने दक्षिणी राज्यों को जीता, किन्तु उनका अपने साम्राज्य में विलय नहीं किया क्योंकि वह अपने साम्राज्य का विस्तार चाहता था, किन्तु अपने दायित्वों में वृद्धि नहीं। अलाउद्दीन एक महान् साम्राज्यवादी सिद्ध हुआ। उसने दक्षिण भारत में मुस्लिम संस्कृति के विकास के लिए मार्ग बनाया तथा दिल्ली सल्तनत के प्रभाव को दक्षिणी भारत तक पहुंचा दिया। अलाउद्दीन महत्वाकांक्षी होने पर व्यावहारिक और कुटनीतिज्ञ था। इस कारण वह सफल रहा। उसकी महत्वाकांक्षाओं ने उसे प्रेरणा और दृढ़ता प्रदान की तथा उसकी व्यावहारिकता ने उसकी महत्वाकांक्षाओं को सीमा में बांधकर रखा। उसने दक्षिण के राज्यों को जीतकर अपने राज्य में सम्मिलित न करना व्यावहारिक समझा और रायचन्द्रदेव तथा वीर बल्लाल के प्रति उसके कूटनीतिक व्यवहार ने उसे उसकी दक्षिण-विजय के लिए अच्छे सहयोगी प्रदान किए। किस अवसर पर छल अथवा कुटनीति तथा किस अवसर पर शौर्य और शक्ति हितकर होगी, इसका उसे ज्ञान था। |
795. निम्न सूफी सन्तों में से कौन सात दिल्ली सुल्तानों के शासनकाल का प्रत्यक्षदर्शी था ? (a) शेख अहमद सरहिन्दी (b) शेख निजामुद्दीन औलिया (c) बाबा फरीद (d) ख्वाजा मुईनुद्दीन चिश्ती |
उत्तर-(b) व्याख्या- शेख निजामुद्दीन औलिया सात दिल्ली सुल्तानों के शासनकाल का प्रत्यक्षदर्शी था। ये चिश्ती सिलसिले से सम्बन्धित थे। इनका जन्म 1224 ई. में हुआ था। वे प्रसिद्ध सूफी सन्त शेख फरीद के शिष्य थे। उन्होंने अपने जीवन का अधिकांश समय दिल्ली में व्यतीत किया। वे ग्यासुद्दीन तुगलक तथा मुहम्मद तुगलक के समकालीन थे। ग्यासुद्दीन तुगलक को उनका संगीत कीर्तन पसन्द नहीं था। अतः उसने इन्हें दिल्ली छोड़ने का आदेश दिया, किन्तु इससे पूर्व ही उसकी मृत्यु हो गई। मुहम्मद तुगलक पर इनका भारी प्रभाव था। ये एकमात्र ऐसे सूफी सन्त थे, जिन्होंने विवाह नहीं किया। 1325 ई. में औलिया साहब का दिल्ली में ही देहान्त हो गया। उनकी समाधि पर प्रतिवर्ष एक मेला लगता है, जिसमें हजारों हिन्दू और मुसलमान अपनी श्रद्धा के पुष्प अर्पित करने के लिए एकत्रित होते हैं। उनके उपदेशों से हिन्दू-मुस्लिम एकता दृढ हुई। स्रोत- मध्यकालीन भारत- एल. पी. शर्मा |
796. निम्नलिखित युग्मों में से कौन एक सही सुमेलित नहीं है ? (a) दीवाने मुश्तखराज — अलाउद्दीन खिलजी (b) दीवाने अमीरकोही — मोहम्मद बिन तुगलक (c) दीवाने खैरात — फिरोजशाह तुगलक (d) दीवाने रियासत — सिकन्दर लोदी |
उत्तर- (d) व्याख्या-आर्थिक मामलों से सम्बन्धित दीवाने रियासत विभाग की स्थापना अलाउद्दीन खिलजी ने की थी। इस विभाग का मुख्य कार्य व्यापारियों पर विशेष ध्यान रखना था। यह शहर के बाजारों पर नियन्त्रण रखता था तथा माप-तौल का निरीक्षण करता था। इसके अतिरिक्त कुछ अन्य अधिकारी सचिव होते थे। राजमहल के कार्यों की देख-रेख करने वाला मुख्य अधिकारी वकील-ए-दर होता था। सुल्तान के अंगरक्षकों के मुखिया को सजादार कहा जाता था। स्त्रोत-मध्यकालीन भारत-एल.पी. शर्मा |
797. किस दिल्ली सुल्तान के शासनकाल में राजकीय अनुवाद विभाग की स्थापना संस्कृत ग्रन्थों के अरबी-फारसी और अरबी-फारसी ग्रन्थों के संस्कृत में अनुवाद के उद्देश्य से की गई थी ? (a) सिकन्दर लोदी (b) कुतुबुद्दीन मुबारक शाह खिलजी (c) मोहम्मद तुगलक (d) रजिया सुल्तान |
उत्तर- (a) व्याख्या-सिकन्दर लोदी के शासनकाल में राजकीय अनुवाद विभाग की स्थापना संस्कृत ग्रन्थों के अरबी-फारसी और अरबी-फारसी ग्रन्थों के संस्कृत में अनुवाद के उद्देश्य से की गई थी। सिकन्दर लोदी वंश का सर्वश्रेष्ठ शासक था। सिकन्दर लोदी के स्वयं के आदेश से एक ‘आयुर्वेदिक ग्रन्थ’ का (फारसी में अनुवाद किया गया जिसका नाम (फरहेगे सिकन्दरी’ रखा गया। इसके समय में गान-विद्या के एक श्रेष्ठ ग्रन्थ ‘लज्जत-ए-सिकन्दरशाही’ की रचना हुई। वह गुलरुखी के नाम से फारसी में कविताएं भी लिखता था। 1504 ई. में उसने राजस्थान के शासकों पर अपने अधिकार को सुरक्षित रखने तथा व्यापारिक मार्गों पर नियन्त्रण स्थापित करने के उद्देश्य से (आगरा नगर की स्थापना की। वहाँ पर उसने एक किला भी बनवाया जो बादलगढ़ का किला के नाम से मशहूर था। 1506 ई. में आगरा को सिकन्दर ने अपनी राजधानी बनाया। सिकन्दर लोदी ने हिन्दुओं पर जजिया पुन, लगा दिया। उसने बोधन नामक एक ब्राह्मण को इसलिए फाँसी दे दी क्योंकि उसका कहना था कि हिन्दू और मुस्लिम धर्म समान रूप से पवित्र हैं। मुसलमानों को ‘ताजिया’ निकालने एवं मुसलमान स्त्रियों को पीरों एवं सन्तों के मजार पर जाने पर सुल्तान ने प्रतिबन्ध लगाया। स्रोत-मध्यकालीन भारत, भाग एक—हरिश्चन्द्र वर्मा |
798. निम्नलिखित में से कौन एक फिरोजशाह तुगलक के खुत्बे में सम्मिलित नहीं था ? (a) कुतुबुद्दीन ऐबक (b) बलबन (c) कुतुबुद्दीन मुबारक शाह खिलजी (d) मोहम्मद बिन तुगलक |
उत्तर- (a) व्याख्या-कुतुबुद्दीन ऐबक फिरोजशाह तुगलक के खुत्बे में सम्मिलित नहीं था। सामान्य जनता की सन्तुष्टि के लिए शुक्रवारी खुत्बे में तुगलक शासकों के अलावा अतिरिक्त अन्य शासकों सिर्फ कुतुबुद्दीन ऐबक को छोड़कर बाकी सभी शासकों के नाम को जोड़ दिया था। स्त्रोत-मध्यकालीन भारत-एल.पी. शर्मा |
799. मोहम्मद बिन तुगलक की निम्न योजनाओं को उनके कालानुक्रम में व्यवस्थित कीजिए- 1. राजधानी परिवर्तन 2. दोआब में कर वृद्धि 3. सांकेतिक मुद्रा का प्रचलन 4. खुरासान अभियान कूट : (a) 1, 2, 3 और 4 (c) 2, 1, 3 और 4 (b) 2, 3, 1 और 4 (d) 3,2, 1 और 4 |
उत्तर-(c)व्याख्या-राज्यारोहण के बाद मुहम्मद-बिन-तुगलक ने कुछ नवीन योजनाओं का निर्माण कर उन्हें क्रियान्वित करने का प्रयत्न किया। जिनका कालानुक्रम इस प्रकार है- सांकेतिक मुद्रा का प्रचलन-1329-30 ई. दोआब में कर वृद्धि-1325-27 ई. राजधानी परिवर्तन-1326-27 ई. खुरासान अभियान-1330-31 ई. स्त्रोत-मध्यकालीन भारत-एल.पी. शर्मा |
800. निम्नलिखित में से कौन एक कुतुबमीनार के विषय में सही नहीं है ? (a) प्रत्येक मंजिल के बाद इसका व्यास कम होता जाता है। (b) यह चार मंजिला इमारत है (c) इसका निर्माण इल्तुतमिश द्वारा पूरा किया गया (d) इसमें हिन्दू तथा इस्लामी स्थापत्य की विशेषताएँ सम्मिलित है |
उत्तर-(b) व्याख्या-कुतुबमीनार सात मंजिला इमारत है। यह मीनार दिल्ली से 12 मील की दूरी पर मेहरौली गाँव में स्थित है। प्रारम्भ में इस मस्जिद का प्रयोग अजान (नमाज के लिए बुलाना) के लिए होता था पर कालान्तर में इसे कीर्ति स्तम्भ के रूप में माना जाने लगा। 1206 ई. में कुतुबुद्दीन ऐबक ने इसका निर्माण कार्य प्रारम्भ करवाया। ऐबक इस इमारत की चार मंजिल का निर्माण कराना चाहता था परन्तु एक मंजिल को निर्माण के बाद ही उसकी मृत्यु हो गई। बाद में इसकी शेष मंजिलों का निर्माण इल्तुतमिश ने 1231 ई. में करवाया। इल्तुतमिश द्वारा निर्माण करवाने के बाद यह इमारत सात मंजिलों की 71.4 मी ऊँची थी। इस समय इसकी 4 मंजिल ही सुरक्षित हैं, शेष तीन क्षतिग्रस्त अवस्था में हैं। कुतुबमीनार का निर्माण ख्वाजा कुतुबुद्दीन बख्तियार काकी की स्मृति में कराया गया था । पर्सी ब्राउन का मानना है कि कुतुबमीनार का निर्माण विश्व के समक्ष इस्लाम की शक्ति के उद्घोष के लिए किया गया था। स्त्रोत-मध्यकालीन भारत, भाग एक-हरिश्चन्द्र वर्मा |
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