History MCQ–इतिहास के 25 प्रश्न के श्रृंखला की शुरुआत की गई है। यह UPSC/UPPSC/BPSC/SSC CGL/NTA NET HISTORY/RAILWAY इत्यादि के लिए बहुत ही महत्वपूर्ण प्रश्नों का संग्रह किया गया है। यह श्रंखला का लक्ष्य 1000 प्रश्नों का है। अतः सब्सक्राइव कर ले एवम् इसका लाभ उठाए।इससे आप अपने तैयारी की जांच कर सकते हैं। साथ ही यह सभी परीक्षाओं के लिए तैयार किया गया है।इसके pdf को आप हमारे वेबसाइट पर डाउनलोड कर सकते हैं।

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History MCQ Set -15 (351-375)
| 351. संगम तमिलों का प्राचीनतम उपलब्ध ग्रन्थ है- (a) पट्टिनप्पाल (b) तिरुमुरुगारुप्पड़ै (c) मदुरैकांची (d) तोलकापियम |
| उत्तर- (d)व्याख्या—संगम तमिलों का प्राचीनतम उपलब्ध ग्रन्थ ‘तोलकाप्पियम‘ है। द्वितीय संगम का एकमात्र शेष ग्रन्थ तोलकाप्पियम अगत्स्य ऋषि के बारह योग्य शिष्यों में से एक ‘तोलकाप्पियर‘ द्वारा लिखा गया है। सूत्र शैली में रचा गया यह ग्रन्थ तमिल भाषा का प्राचीनतम व्याकरण ग्रन्थ है। व्याकरण के साथ-साथ धर्म, अर्थ, काम एवं मोक्ष की नियमावली भी इस ग्रन्थ में है। |
| 352. तमिल में महाभारत के सर्वप्रथम अनुवादक (Translator) थे— (a) पेरून्देवनार (b) कम्बन (c) सुन्दरमूर्ति (d) भारवि |
| उत्तर- (a)व्याख्या- तमिल में महाभारत के सर्वप्रथम अनुवादक ‘पेरुन्देवनार‘ थे, जो ‘भारतम्‘ नाम से जाना जाता है। महाभारत का बांगला भाषा में अनुवाद अलाउद्दीन नुसरत शाह के समय में हुआ। महर्षि व्यास द्वारा महाभारत महाकाव्य रामायण से वृहद् है। महाभारत में मूलत: 8800 श्लोक थे तथा इसका नाम ‘जयसंहिता‘ (विजय सम्बन्धी ग्रन्थ) था। बाद में श्लोकों की संख्या 24000 होने के पश्चात् यह वैदिक जन भरत के वंशजों की कथा होने के कारण ‘भारत‘ कहलाया। कालान्तर में श्लोकों की संख्या बढ़कर एक लाख होने पर यह ‘शतसाहस्त्री संहिता‘ या ‘महाभारत‘ कहलाया। महाभारत का प्रारम्भिक उल्लेख ‘आश्वलायन गृहसूत्र‘ में मिलता है। |
| 353. इतिहासकार कल्हण था- (a) बौद्ध (b) ब्राह्मण (c) जैन (d) इनमें से कोई नहीं |
| उत्तर-(b)व्याख्या इतिहासकार कल्हण ब्राह्मण था। कल्हण के पिता चम्पक ब्राह्मण कुल के थे। वे लोहार वंश के शासक हर्ष के प्रशासन में मन्त्री पद पर थे। कल्हण किसी राजकीय पद पर थे या नहीं इस विषय की स्पष्ट जानकारी नहीं मिलती है। कल्हण ने अपने प्रसिद्ध ग्रन्थ ‘राजतरंगिणी’ की रचना लोहार वंश के अन्तिम शासक जयसिंह के समय में की थी। इस ग्रन्थ से कश्मीर के इतिहास के बारे में जानकारी मिलती है। कल्हण ने अपने ग्रन्थ राजतरंगिणी में संस्कृत भाषा का प्रयोग किया है। |
| 354. सातवाहन वंश का संस्थापक था- (a) तकर्णि प्रथम (b) सिमुक (c) शातकर्णि द्वितीय (d) रुद्रदामन प्रथम |
| उत्तर- (b) व्याख्या— सातवाहन वंश का शासक सिमुक था। पुराणों में इस राजवंश को आन्ध्र भृत्य एवं आन्ध्र जातिय कहा गया है। यह इस बात का सूचक है कि जिस समय पुराणों का संकलन हो रहा था सातवाहनों का शासन आन्ध्र प्रदेश में ही सीमित था। इस वंश की स्थापना सिमुक नामक व्यक्ति ने लगभग 60 ई.पू. में कन्त वंशी सुशर्मा की हत्या करके की। सिमुक के विषय में अधिकांश जानकारी हमें पुराण एवं नानाघाट प्रतिमा लेख से मिलती है। पुराणों में सिमुक को सिन्धुक, शिशुक, शिक्षक एवं वृषल आदि नामों से सम्बोधित किया गया है। |
| 355. येन-काओ-चेन को साधारणतः इस नाम से ही जाना जाता है- (a) कडफिसेस प्रथम (b) कडफिसेज द्वितीय (c) कनिष्क (d) वशिष्क |
| उत्तर-(b) व्याख्या- येन काओ चेन’ को साधारणतः कडफिसेस द्वितीय नाम से ही जाना जाता है। कुजुल कडफिसेस के बाद उसका पुत्र विम कडफिसेस उत्तराधिकारी बना। चीनी ग्रन्थ ‘हाऊ-हान-शू’ से यह अनुमान लगाया जाता है कि विम ने ‘तिएन-चूं’ (सिन्धु नदी पार तक्षशिला एवं पंजाब के क्षेत्र) को विजित किया। कडफिसेस ने सोने एवं ताँबे के सिक्के जारी करवाए। भारतीय प्रभाव से प्रभावित इन सिक्कों के एक ओर यूनानी लिपि एवं दूसरी ओर खरोष्ठी लिपि खुदी थी। इसने अपने सिक्कों पर ‘महाराज, राजाधिराज, महेश्वर सर्वलोकेश्वर’ आदि उपाधि धारण की। कुछ सिक्के, जिन पर शिव, नन्दी एवं त्रिशूल की आकृतियाँ बनी हैं, से ऐसा लगता है कि विम कडफिसेस शैव मतानुयायी था। प्लिनी के अनुसार विम के समय में भारत के रोम एवं चीन से व्यापारिक सम्बन्ध थे। इसका शासन काल शायद 65 ई.पू. से 78 ई.पू. तक था। विम कडफिसेस द्वितीय के नाम से भी जाना जाता था। |
| 356. ‘वृहत्कथा’ का लेखक था- (a) दत्तमित्र (b) गुणाढ्य (c) भद्रबाहु (d) सर्ववर्मन |
| उत्तर-(b)व्याख्या- ‘वृहत्कथा’ का लेखक गुणाढ्य था। प्राचीन भारतीय कथाकारों में गुणाढ्य एक महत्वपूर्ण स्थान रखता है। यह सातवाहन शासक हाल, जो प्रथम द्वितीय सदी में हुआ था, का दरबारी कवि था। उसकी वृहत्कथा ग्रन्थ की भाषा ‘पैशाची भाषा’ है। इस ग्रन्थ में उसने प्रणय प्रसंगों तथा अद्भुत यात्रा विवरणों का सुन्दर वर्णन किया है। यह ग्रन्थ यद्यपि आज मूल रूप से उपलब्ध नहीं होता, तथापि अनेक विद्वानों ने इसका संस्कृत भाषा में अनुवाद किया, जिनमें क्षेमेन्द्र तथा सोमदेव प्रमुख है। विशाखदत, भास, बाणभट्ट, हर्ष, दण्डी आदि आने वाले गद्य लेखकों ने गुणाढ्य की आधार सामग्री ली है तथा उनकी रचना व लेखनी से प्रेरणा ग्रहण की है। |
| 357. पूर्व गुप्त काल में कर्षापण क्या था ? (a) एक अधिकारी (b) विलास की वस्तु (c) एक सिक्का (d) बन्दरगाह |
| उत्तर-(c) व्याख्या- पूर्व गुप्त काल में कर्षापण एक सिक्का था। यह सोना, चाँदी, ताँबा तथा सीसे से बनता था। इसके अतिरिक्त मौर्योत्तर काल के नगरों में विभिन्न प्रकार के सिक्कों का प्रचलन था। सोने के मुख्य सिक्के ‘निष्क’, ‘स्वर्ण’ तथा ‘पण’ थे। ‘शतमान’ चाँदी का बना सिक्का होता था। ‘काकिनी’ सिक्का ताँबे तथा रांगे से बनता था। कुषाणों ने बड़ी मात्रा में सोने के सिक्के जारी किए परन्तु उन्होंने अपने दैनिक जीवन के व्यापारिक लेन-देन में तांबे के सिक्के का ही प्रयोग किया। |
| 358. चन्द्रगुप्त द्वितीय ने अपनी बेटी प्रभावती का विवाह इससे किया— (a) रुद्रसेन प्रथम (b) रुद्रसेन द्वितीय (c) अग्निमित्र (d) नागसेन |
| उत्तर-(b) वाकाटकों का सहयोग प्राप्त करने के लिए चन्द्रगुप्त ने अपनी पुत्री प्रभावती गुप्ता का विवाह वाकाटक नरेश रुद्रसेन से किया . गहड़वाल शासकों को ‘काशी नरेश‘ के रूप में भी जाना जाता था, क्योंकि बनारस इनके राज्य की पूर्वी सीमा के नजदीक था। द्वितीय के साथ कर दिया। वाकाटकों तथा गुप्तो की सम्मिलित शक्ति ने शकों का उन्मूलन कर डाला। |
| 359. मौर्य साम्राज्य का अन्तिम राजा था- (a) देववर्मन (b) बृहद्रथ (c) कुणाल (d) शालिशुक |
| उत्तर-(b) व्याख्या- मौर्य साम्राज्य का अन्तिम शासक बृहद्रथ था। इसकी पुष्टि बाणभट्ट के हर्षचरित से भी हो जाती है। उसे ‘प्रज्ञादुर्बल’ (बुद्धिहीन) शासक कहा गया है। पुष्यमित्र शुंग उसका सेनापति था। पुष्यमित्र ने 184 ई.पू. के लगभग अपने स्वामी बृहद्रथ की सेना निरीक्षण करते समय धोखे से हत्या कर दी एवं शुंग वंश की स्थापना की। |
| 360. गहड़वाल वंश का संस्थापक कौन था जिसने कन्नौज को अपनी शक्ति का प्रमुख केन्द्र बनाया ? (a) जयचन्द्र (b) विजयचन्द्र (c) चन्द्रदेव (d) गोविन्द |
| उत्तर-(c) व्याख्या – गहड़वाल वंश का संस्थापक चन्द्रदेव था जिसने कन्नौज को अपनी शक्ति का प्रमुख केन्द्र बनाया। दिल्ली के तोमरों ने भी उसकी अधीनता स्वीकार की। चन्द्रदेव ने महाराजाधिराज की उपाधिव्याख्या – चन्द्रगुप्त द्वितीय ने अपनी पुत्री प्रभावती का विवाह वाकाटक नरेश रुद्रसेन द्वितीय के साथ किया था। वाकाटक लोग आधुनिक महाराष्ट्र प्रान्त में शासन करते थे। |
| 361. गुप्तोत्तर काल के निम्नलिखित में से किस न्यायवेत्ता ने घोषित किया कि शूद्र प्रकृति से दास नहीं हैं ? (a) मेधातिथि (b) विज्ञानेश्वर (c) नारद (d) जीमूतवाहन |
| उत्तर- (a) व्याख्या- गुप्तोत्तर काल के न्यायवेत्ता मेधातिथि ने घोषित किया कि शूद्र प्रकृति से दास नहीं है। मेधातिथि के अनुसार शूद्र के लिए आवश्यक नहीं कि वह द्विजातियों की सेवा से आजीविका चलाए। जबकि मेधातिथि ने उन्हें चौथे आश्रम के फल अर्थात् मोक्ष के अधिकार से वंचित किया है। गुप्तोत्तर कालीन सामाजिक परिवर्तन में सबसे महत्त्वपूर्ण परिवर्तन था— शूद्रों की सामाजिक स्थिति में सुधार। देवल तथा पराशर स्मृतियों में शूद्र के लिए सेवा के अतिरिक्त कृषि, पशुपालन, वाणिज्य तथा शिल्प उपयुक्त व्यवसाय बतलाए गए हैं। ओश्नस स्मृति में व्यापार और शिल्प शूद्र की आजीविका के साधन बताए गए हैं। ह्वेनसांग ने भी शूद्रों को कृषक कहा। |
| 362. प्रतिहार शासक नागभट्ट प्रथम को पराजित करने वाला निम्नलिखित में से कौन-सा राष्ट्रकूट राजा था ? (a) इन्द्र द्वितीय (b) कृष्ण तृतीय (c) अमोघवर्ष प्रथम (d) गोविन्द III |
| उत्तर—(d) व्याख्या – राष्ट्रकूट शासक गोविन्द तृतीय ने प्रतिहार शासक नागभट्ट द्वितीय को पराजित किया था। नागभट्ट द्वितीय (795-833 ई.) गोविन्द तृतीय (793-814 ई.) का समकालीन था। जबकि नागभट्ट प्रथम (730-56 ई.) गुर्जर-प्रतिहार वंश का संस्थापक था। दिए गए प्रश्न में शासकों का आपस में कोई सम्बन्ध नहीं है। ध्रुव का पुत्र गोविन्द तृतीय 793 ई. में राष्ट्रकूट नरेश बना। दक्कन में अपनी स्थिति मजबूत करने के उपरान्त उसने कन्नौज पर आधिपत्य हेतु त्रिपक्षीय संघर्ष में भाग लेकर चक्रायुध एवं उसके संरक्षक धर्मपाल तथा प्रतिहार वंश के नागभट्ट द्वितीय को परास्त कर कन्नौज पर अधिकार कर लिया। जिस समय गोविन्द तृतीय उत्तर भारत के अभियान में व्यस्त था उस समय उसकी अनुपस्थिति का फायदा उठाकर उसके विरुद्ध पल्लव पाण्ड्य केरल एवं गंग शासकों ने एक संघ बनाया, पर 802 ई. के आस-पासगोविन्द ने इस संघ को पूर्णतः नष्ट कर दिया। गोविन्द तृतीय के शासन काल को राष्ट्रकूट का चरमोत्कर्ष काल माना जाता है। |
| 363. ‘गीतगोविन्द’ के रचयिता जयदेव के संरक्षक निम्नलिखित में से कौन शासक था ? (a) लक्ष्मण सेन (b) खारवेल (c) कुमारपाल (d) शशांक |
| उत्तर- (a) व्याख्या- ‘गीतगोविन्द’ के रचयिता जयदेव का संरक्षक शासक लक्ष्मणसेन था। लक्ष्मणसेन 1178 ई. में राजगद्दी पर बैठा। उसका शासन सम्पूर्ण बंगाल पर विस्तृत था। कुछ समय तक उसके राज्य की सीमा दक्षिण-पूर्व में उड़ीसा और पश्चिम में वाराणसी, इलाहाबाद तक थी। उसके शासन काल के अन्तिम चरण में उसके कई सामन्तों ने विद्रोह कर स्वतन्त्र राज्यों की स्थापना कर ली। 1202 ई. में इख्तियारुद्दीन मुहम्मद बिन बख्तियार ने लक्ष्मणसेन की राजधानी लखनौती पर आक्रमण कर उसे नष्ट कर दिया। जयदेव के अतिरिक्त हलायुध एवं पवनदूतम के लेखक (धोई भी रहते थे। |
| 364. निम्नलिखित में से कौन-सा शब्द चोल के शाही सैन्य दल के लिए था ? (a) कट्टुपड्डी (b) कैक्कोलर (c) भ्रतका (d) कड़गम |
| उत्तर-(b) व्याख्या- कैक्कोलर शब्द चोल के शाही सैन्य दल के लिए प्रयुक्त होता था। चोलों की स्थायी सेना में पैदल, गजारोही, अश्वारोही आदि सैनिक शामिल होते थे। इनके पास एक बड़ी नौसेना थी, जो राजाराम प्रथम एवं राजेन्द्र प्रथम के समय में चरमोत्कर्ष पर थी। बंगाल की खाड़ी चोलों की नौसेना के कारण ही ‘चोलों की झील’ बन गई थी। ‘बडपेई कैक्कोलर’ राजा की व्यक्तिगत सुरक्षा में तैनात पैदल दल को कहते थे। जबकि ‘कुंजिर-मल्लर’ गजारोही दल को, ‘कुदिरैच्चैवगर’ ७ अश्वारोही दल को, ‘बिल्लिगढ़’ धनुर्धारी दल को, ‘कैक्कोलर’ पैदल सेना में सर्वाधिक शक्तिशाली को, ‘सैगुन्दर’ भाला से प्रहार करने में निपुण सैनिकों को एवं ‘तेलैवकार’ राजा के अतिविश्वसनीय अंगरक्षक को कहते थे। सेना गुल्मों एवं छावनियों (कडगम) में रहती थी। चोल काल में सेना की टुकड़ी का नेतृत्व करने वाले सेनापति ब्राह्मण थे, जिन्हें ब्रह्माधिराज कहा जाता था। |
| 365. चोल शासकों ने इस उद्देश्य से भूमि का विस्तृत मापन (सर्वे कराया— (a) स्वामित्व का अधिकार निश्चित करने हेतु (b) सरकार के राजस्व भाग को निश्चित करने हेतु (c) अनाज का उत्पादन (d) सिंचाई के स्रोतों की सीमा |
| उत्तर-(b) व्याख्या- सरकार के राजस्व भाग को निश्चित करने हेतु चोल शासकों ने भूमि का विस्तृत मापन (सर्वे) कराया। राज्य की आय का मुख्य साधन भू-राजस्य था। भू-राजस्व निर्धारित करने से पूर्व भूमि का सर्वेक्षण, वर्गीकरण एवं नाप-तोल कराई जाती थी। तत्कालीन अभिलेखों से जात होता है कि राजाराम प्रथम एवं कुलोत्तुंग के पैर की माप ही भूमि की लम्बाई मापने की इकाई बनी। भूमिकर भूमि की उर्वरता एवं वार्षिक फसल चक्र देखने के बाद निर्धारित किया जाता था। सम्भवतः चोल काल में भूमि कर उपज का एक तिहाई हिस्सा (1/3) हुआ करता था, जिसे अन्न व नकद दोनों रूपों में लिया जाता था। राजस्व विभाग का उच्च अधिकारी ‘परित्योत्तगककू’ कहा जाता था। विवाह समारोह पर भी कर लगता था। अभिलेखों में करों व वसूलियों के लिए ‘हौं’ या ‘वर’, ‘गुरुपाण्डु’ और ‘दण्डम’ शब्द का प्रयोग किया गया है। अन्न का मान एक वालम (तीन मन) था। (वेलि भूमि माप की इकाई थी। सोने के सिक्के को (‘काश’ कहा जाता था। |
| 366. चोल काल में निम्नलिखित में से कौन-सा कर शैक्षणिक उद्देश्य के लिए था ? (a) देवदान (b) सलभोग (c) ब्रह्मदेव (d) सर्वमान्य |
| उत्तर- (a)व्याख्या – चोल काल में ‘देवदान‘ कर शैक्षणिक उद्देश्य के लिए था। |
| 367. मुहम्मद गोरी खुसरो शाह के विरुद्ध निम्नलिखित में से किसके साथ मिल गया ? (a) गुजरात का शासक (b) मुलतान का शासक (c) पेशावर का शासक (d) जम्मू का शासक |
| उत्तर—(d) व्याख्या- मुहम्मद गोरी खुसरो शाह के विरुद्ध जम्मू के शासक के साथ मिल गया था। मुहम्मद गोरी ने भारत को पंजाब के रास्ते जीतने की योजना के तहत 1185 ई. में पंजाब के उत्तर पूर्वी सीमा प्रान्त पर अधिकार कर लिया। अन्ततः 1186 ई. में जम्मू के राजा विजयदेव के सहयोग से मुहम्मद गोरी ने लाहौर के सूबेदार खुसरव मलिक को बन्दी बना लिया। सुखरव मलिक को बन्दी रूप में गौर (राजनी) भेज दिया गया। |
| 368. पृथ्वीराज चौहान के विरुद्ध मुहम्मद गोरी के आक्रमण के समय कन्नौज पर निम्नलिखित में से किस वंश का शासन था ? (a) चन्देल (b) प्रतिहार (c) पाल (d) गहड़वाल |
| उत्तर- (d) व्याख्या- पृथ्वीराज चौहान के विरुद्ध मुहम्मद गोरी के आक्रमण के समय कन्नौज पर गहड़वाल वंश का शासन था। पृथ्वीराज चौहान (1178-92 ई.) जिसे राय पिथौरा भी कहा जाता था, गहड़वाल शासक जयचन्द्र (1170-93) का समकालीन था। पृथ्वीराज चौहान और जयचन्द के बीच में संघर्ष था जिसका उल्लेख चन्दबरदायी के पृथ्वीराजरासो में है। पृथ्वीराजरासो में चौहान नरेश द्वारा जयचन्द की पुत्री संयोगिता का अपहरण, पृथ्वीराज के विरुद्ध चन्देल परमर्दि की जयचन्द द्वारा सहायता का भी उल्लेख है। इसी कारण पृथ्वीराज एवं गोरी के युद्ध में जयचन्द तटस्थ रहा। |
| 369. तबकात-ए-नासिरी का लेखक था- (a) बरनी (b) निजामुद्दीन (c) मिनहाज-उस-सिराज (d) इनमे से कोई भी नहीं |
| उत्तर-(c) व्याख्या—तबकाते नासिरी का लेखक मिनहाज-उस-सिराज था। मिनहाज द्वारा रचित इस पुस्तक में मुहम्मद के भारत विजय तथा तुर्की सल्तनत के आरम्भिक इतिहास लगभग 1260 ई. तक की जानकारी मिलती है। मिनहाज ने अपनी इस कृति को गुलाम वंश के शासक नासिरुद्दीन महमूद को समर्पित की थी। उस समय मिनहाज दिल्ली का मुख्य काजी था। इतिहासकार इलियट और डाउसन ने तबकाते नासिरी का अंग्रेजी भाषा में अनुवाद किया। तबकाते नासिरी फारसी भाषा में लिखा गया ग्रन्थ है। |
| 370. निम्नलिखित कृतियाँ जियाउद्दीन बरनी के द्वारा लिखी गई थीं- (a) तारीख-ए-फिरोजशाही और किरानुस्सादैन (b) फतवा-ए-जहाँदारी और आशिका (c) तारीख-ए-फिरोजशाही और फतवा ए-जहाँदारी (d) फुस्सलातीन और तारीख-ए-फिरोजशाही |
| उत्तर-(c) व्याख्या- तारीख-ए-फिरोजशाही और फतवा-ए-जहाँदारी कृतियाँ जियाउद्दीन बरनी के द्वारा लिखी गई थीं। फारसी भाषा में रचित तारीख-ए-फिरोजशाही में बलबन के राज्याभिषेक से लेकर फिरोज तुगलक के शासन के छठे वर्ष तक की जानकारी मिलती है। इस प्रकार इस अन्य से हमें सुल्तान बलबन खिलजी सुल्तानों और तुगलक सुल्तानों के शासनकाल के बारे में ज्ञान प्राप्त होता है। बरनी ने इस ग्रन्थ में राजनीतिक घटनाओं, शासन-प्रबन्ध, सामाजिक स्थिति, आर्थिक दशा आदि सभी का वर्णन किया है जिसके कारण यह ग्रन्थ मध्यकालीन भारतीय इतिहास और सभ्यता को जानने के लिए एक मूल्यवान ग्रन्थ माना गया है। जियाउद्दीन बरनी की कृति फतवा-ए-जहाँदारी में दिल्ली सल्तनत कालीन राजनीतिक विचारधारा की सही तस्वीर प्रस्तुत की गई है। इसके अतिरिक्त बरनी की कुछ अन्य कृतियाँ सनाए मुहमदी, सलाते कबीर, इनायत नामाए इलाही, मासीर सादात, हसरत नामा, तारीखे वमलियान आदि हैं। |
| 371. अमीर खुसरो निम्नलिखित में से किन पुस्तकों का रचयिता था ? (a) आशिका, किरानुस्सादैन, खजाइनुलफुतूह (b) किरानुस्सादैन, आशिका, तारीख-ए-मुबारकशाही (c) खजाइनुलफुतूह, तारीख-ए-मुबारकशाही, आशिका (d) तारीख-ए-मुबारकशाही, नूर-ए-सिपहर, आशिका |
| उत्तर- (a) व्याख्या-अमीर खुसरो आशिका, किरानुस्सादैन, खजाइनुलफुतूह आदि पुस्तकों का रचयिता था। ‘आशिका’, खुसरो की इस कृति में गुजरात के राजा करन की पुत्री देवलरानी और अलाउद्दीन के पुत्र खिज्रखाँ के बीच प्रेम का उल्लेख है। इसके अतिरिक्त यह पुस्तक अलाउद्दीन की गुजरात तथा मालवा पर विजय तथा मंगोलों द्वारा स्वयंअपने कैद किए जाने की जानकारी भी देती है। ‘किरानुस्सादैन’ में बुगरा खाँ और उसके बेटे के बाद के मिलन का वर्णन है। ‘खजानुलह’, इसे ‘तारीखे अलाई’ नाम से भी जाना जाता है। इसमें ‘अलाउद्दीन ‘खिलजी’ के शासन के पूर्व के 15 वर्षों की घटनाओं का वर्णन मिलता है |
| 372. निम्नलिखित में से किसने पंजाब के लिए कुतुबुद्दीन ऐबक से संघर्ष किया ? (a) इख्तियारुद्दीन (b) ताजुद्दीन एल्दोज (c) नासिरुद्दीन कुबाचा (d) इनमें से कोई नहीं |
| उत्तर-(b)व्याख्या – ताजुद्दीन एल्दौज एवं कुतुबुद्दीन ऐबक के बीच पंजाब के लिए संघर्ष हुआ था। सुल्तान ग्यासुद्दीन ने यल्दौज को दासता से मुक्त करके गजनी का शासक स्वीकार कर लिया था। ख्वारिज्मशाह के दबाव के कारण यल्दीज को गजनी छोड़ने के लिए बाध्य होना पड़ा। उसने पंजाब पर आक्रमण किया। गजनी का शासक होने के नाते वह भारत के तुर्की राज्य को अपने अधिकार में मानता था। ऐबक ने उसका विरोध किया और उसे परास्त करके पंजाब को छोड़ने के लिए बाध्य किया। |
| 373. नव मुसलमान निम्नलिखित में से कौन थे ? (a) दिल्ली के पास बसे मंगोलों के वंशज जिन्होंने इस्लाम स्वीकार कर किया था (b) इस्लाम स्वीकार करने वाले हिन्दू (c) खिलजी सुल्तान (d) इलवारी सुल्तान |
| उत्तर- (a) व्याख्या-नव मुसलमान दिल्ली के पास बसे मंगोलों के वंशज थे, जिन्होंने इस्लाम स्वीकार कर लिया था। 1292 ई. में मंगोल हलाकू के पौत्र अब्दुल्ला ने भारत पर आक्रमण किया जिसे जलालुद्दीन खिलजी ने परास्त किया। अब्दुल्ला के पास डेढ़ लाख सेना थी। कुछ विद्वानों के अनुसार मंगोल नेता उलूग के नेतृत्व में कुछ मंगोलों को सुल्तान ने भारत में बसने की आज्ञा प्रदान की। जलालुद्दीन ने उलूग के साथ ही अपनी पुत्री का विवाह कर दिया। साथ ही उनके रहने के लिए दिल्ली के निकट बस्ती बसाई गई। भारत में बसने वाले मंगोलों के उत्तराधिकारी ‘नव मुसलमान’ कहलाए। |
| 374. मुहम्मद बिन तुगलक के समय किसे चीन का राजदूत नियुक्त किया गया ? (a) बरबोसा (b) बरनी (c) इब्नबतूता (d) अब्दुर्रज्जाक |
| उत्तर-(c) व्याख्या- मुहम्मद-बिन-तुगलक ने इब्नबतूता को अपना राजदुत बनाकर चीन भेजा था। यह मोरक्को मूल का अफ्रीकी यात्री था। इसने सल्तनत काल में मुहम्मद बिन ‘तुगलक के शासन काल में भारत को यात्रा की थी। मुहम्मद बिन तुगलक ने इसे दिल्ली का काजी नियुक्तकिया था। बाद में उसे 1342 ई. में सुल्तान का राजदूत बनाकर चीन भेजा गया। 1345 ई. में यह मदुराई के सुल्तान के दरबार में भी रहा। इब्नबतूता ने ‘रेहला’ नामक पुस्तक में अपने यात्रा संस्मरणों का संकलन प्रकाशित किया। रेहला में मुसलमानों के त्यौहार (चेहल्लुम का उल्लेख है। |
| 375. बहलोल लोदी की महत्त्वपूर्ण उपलब्धि यह थी कि उसने निम्नलिखित में से एक राज्य के विरुद्ध सफलतापूर्वक युद्ध किया- (a) मेवात (b) जौनपुर (c) चन्दावर (d) सम्भल |
| उत्तर-(b) ● व्याख्या- बहलोल लोदी की मुख्य सफलता 1484 ई. में जौनपुर राज्य को दिल्ली सल्तनत में सम्मिलित करने की थी। बहलोल लोदी दिल्ली में प्रथम अफगान राज्य का संस्थापक था। वह अफगानिस्तान के ‘गिलजाई कबीले’ की महत्त्वपूर्ण शाखा ‘शाहूरतेल’ में पैदा हुआ था। 19 अप्रैल, 1451 को बहलोल ‘बहलोल शाह गाजी’ की उपाधि से दिल्ली के सिंहासन पर बैठा। उसने बहलोली सिक्के को चलाया जो अकबर के पहले तक उत्तरी भारत में विनिमय का मुख्य साधन बना रहा। बहलोल एक साधारण व्यक्ति था तथा तशिरतेदाउदी’ के लेखक अब्दुल्लाह के अनुसार वह कभी सिंहासन पर नहीं बैठता था, जब अपने सरदारों के साथ मिलता था। बहलोल अपने सरदारों को ‘मसनद-ए-अली’ कहकर पुकारता था। |
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